Prachin Bharat ke nam ka itihas/ प्राचीन भारत के नाम का इतिहास
Prachin Bharat ke nam ka itihas/ प्राचीन भारत के नाम का इतिहास
कभी सोचा है दोस्तो की भारत का नाम जम्बू द्वीप, भारत, हिंदुस्तान, आर्याव्रत और इंडिया केसे पड़ा। मतलब एक ही देश के इतने नाम केसे हो सकते है..
इनमे सबसे प्राचीन नाम जम्बू द्वीप है तो शरुआत से शुरू करते है तभी समझ आएगा।
जम्बू द्वीप से छोटा है भारतवर्ष। भारतवर्ष में ही आर्यावर्त स्थित था। आज न जम्बू द्वीप है न भारतवर्ष और न आर्याव्रत। आज सिर्फ हिन्दुस्थान है और सच कहें तो यह भी नहीं। क्या कारण है कि वेदों को मानने वाले लोग अब अपने ही देश में दर-बदर हैं? वह लोग जिनके कारण ही दुनियाभर के धर्मों और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई, वह लोग जिनके कारण दुनिया को ज्ञान, विज्ञान, योग, ध्यान और तत्व ज्ञान मिला।
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Prachin bharat |
पहले संपूर्ण हिन्दू जाति जम्बू द्वीप पर शासन करती थी। फिर उसका शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया। फिर महाभारत में कुरुओं और पुरुओं की लड़ाई के बाद आर्यावर्त नामक एक नए क्षेत्र का जन्म हुआ जिसमें आज के हिन्दुस्थान के कुछ हिस्से, संपूर्ण पाकिस्तान और संपूर्ण अफगानिस्तान का क्षेत्र था। लेकिन लगातार आक्रमण, धर्मांतरण और युद्ध के चलते अब घटते-घटते सिर्फ हिन्दुस्तान बचा है।
यह कहना सही नहीं होगा कि पहले हिन्दुस्थान का नाम भारतवर्ष था और उसके भी पूर्व जम्बू द्वीप था। कहना यह चाहिए कि आज जिसका नाम हिन्दुस्तान है वह भारतवर्ष का एक टुकड़ा मात्र है। जिसे आर्यावर्त कहते हैं वह भी भारतवर्ष का एक हिस्साभर है और जिसे भारतवर्ष कहते हैं वह तो जम्बू द्वीप का एक छोटा सा हिस्सा मात्र है। जम्बू द्वीप में पहले देव-असुर और फिर बहुत बाद में कुरुवंश और पुरुवंश की लड़ाई और विचारधाराओं के टकराव के चलते यह जम्बू द्वीप कई भागों में बंटता चला गया।
Prachin Bharat ke nam ka itihas/ प्राचीन भारत के नाम का इतिहास
धरती के सात द्वीप : पुराणों और वेदों के अनुसार धरती के सात द्वीप थे- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बू द्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है।
जम्बू द्वीप का वर्णन : जम्बू द्वीप को बाहर से लाख योजन वाले खारे पानी के समुद्र ने चारों ओर से घेरा हुआ है। जम्बू द्वीप का विस्तार एक लाख योजन है। जम्बू (जामुन) नामक वृक्ष की इस द्वीप पर अधिकता के कारण इस द्वीप का नाम जम्बू द्वीप रखा गया था।
जम्बू द्वीप के 9 खंड थे : इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भारत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय। इनमें भारतवर्ष ही मृत्युलोक है, शेष देवलोक हैं। इसके चारों ओर लवण सागर है। इस संपूर्ण नौ खंड में इसराइल से चीन और रूस से भारतवर्ष का क्षेत्र आता है।
भारतवर्ष का वर्णन : समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में भारतवर्ष स्थित है। इसका विस्तार 9 हजार योजन है।
वायु पुराण के अनुसार महाराज प्रियव्रत का अपना कोई पुत्र नहीं था तो उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था। नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था। इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा इन्हीं भरत के नाम पर इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि महाभारत के समय पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष नाम पड़ा। परन्तु ऐसा नहीं है क्युकी महाभारत को हुए लगभग पांच हजार वर्ष हुए है और हमारे पास इसका कोई प्रमाण भी उपलब्ध नहीं है परन्तु हमारी वायु पुराण के अनुसार अब से लगभग २२ लाख वर्ष पूर्व त्रेता युग के प्रारम्भ में मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भारत भूखंड को बसाया था। और आज भी जब हम हमारे घर में कोई यज्ञिक कार्य करते है जैसे विवाह, मुंडन,हवन आदि तो पंडित जी हमें संकल्प करवाते है, हालांकि हम सभी उस संकल्प को बहुत हल्के में लेते है परन्तु उस संकल्प में वायु पुराण में लिखा वो प्रमाण है। संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है कि...
।। जम्बू द्वीपे भरतखंडे आर्याव्रते देशांतरगते...।।
अर्थात् इसमें जम्बू द्वीप आज के युरेशिया के लिए प्रयुक्त हुआ है। यानी इस छोटे से संकल्प द्वारा हम भारत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते है और हमें इस बात की जानकारी तक नहीं है।
Bharatvarsh |
Prachin bharat ke nam ka itihas/ प्राचीन भारत के नाम का इतिहास
अब बात आती है कि दुष्यंत और शंकुतला के पुत्र भरत से भारत का नाम क्यों जोड़ा जाता है तो ये हो सकता है कि शायद नामो की समानता के कारण ऐसा हुआ हो। धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों साल पहले ही हो चुका था और अब तो विज्ञान भी यही मानता है तो हम इस पांच हजार साल पुरानी बात पर विश्वास क्यों करे। इतना ही नहीं हमारे संकल्प मंत्र में पंडित जी हमे सृष्टि संवत के विषय में भी बताते है की अभी एक अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हजार एक सौ तेरहवां(13वा) वर्ष चल रहा है। तभी तो यह आश्चर्य की बात है की एक तरफ तो हम इतने वर्षों की बात करते है और दूसरी तरफ भारत का इतिहास केवल पांच हजार वर्ष पूर्व का बताते है जिसका कोई प्रमाण भी नहीं, असल में यह इतिहास अंग्रेजो ने लिखा है जिसे आज भी हम आंखे बन्द करके पढ़े जा रहे है। इसका एक कारण यह भी है की हम हिन्दू शुरू से ही अपने धर्म ग्रंथो के प्रति उदासीन है जिसका फायदा अंग्रेजो और मुगलों और भी कई आक्रमणकारियों ने उठाया और हमारे इतिहास को बदल कर रख दिया। और हम आज तक पाठयक्रमों में वही इतिहास पढ़ा रहे है और पढ़ रहे है।
प्राचीनकाल में जम्बू द्वीप ही एकमात्र ऐसा द्वीप था, जहां रहने के लिए उचित वातारवण था और उसमें भी भारतवर्ष की जलवायु सबसे उत्तम थी।
जम्बू द्वीप का विस्तार
* जम्बू दीप : सम्पूर्ण एशिया
* भारतवर्ष : पारस (ईरान), अफगानिस्तान, पाकिस्तान, हिन्दुस्थान, नेपाल, तिब्बत, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका, मालद्वीप, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, कम्बोडिया, वियतनाम, लाओस तक भारतवर्ष।
Prachin Bharat ke nam ka itihas/ प्राचीन भारत के नाम का इतिहास
आर्यावर्त : बहुत से लोग भारतवर्ष को ही आर्यावर्त मानते हैं जबकि यह भारत का एक हिस्सा मात्र था। वेदों में उत्तरी भारत को आर्यावर्त कहा गया है। आर्यावर्त का अर्थ आर्यों का निवास स्थान। आर्यभूमि का विस्तार काबुल की कुंभा नदी से भारत की गंगा नदी तक था। ऋग्वेद में आर्यों के निवास स्थान को 'सप्तसिंधु' प्रदेश कहा गया है यानी सात नदियों वाला।
वेद और महाभारत को छोड़कर अन्य ग्रंथों में जो आर्यावर्त का वर्णन मिलता है वह भ्रम पैदा करने वाला है, क्योंकि आर्यों का निवास स्थान हर काल में फैलता और सिकुड़ता गया था इसलिए उसकी सीमा क्षेत्र का निर्धारण अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग मिलता है। मूलत: जो प्रारंभ में था वही सत्य है।
महाभारत के बाद : महाभारत काल के बाद भारतवर्ष पूर्णत: बिखर गया था। सत्ता का कोई ठोस केंद्र नहीं था। ऐसे में खंड-खंड हो चला आर्यखंड एक अराजक खंड बनकर रह गया था। मलेच्छ और यवन लगातार आर्यों पर आक्रमण करते रहते थे। आर्यों में भरत, दास, दस्यु और अन्य जाति के लोग थे। ये बात ध्यान देने योग्य है कि आर्य किसी जाति का नाम नहीं बल्कि वेदों के अनुसार जीवन-यापन करने वाले लोगों का नाम है।
बौद्धकाल में विचारधाराओं की लड़ाई अपने चरम पर चली गई। ऐसे में चाणक्य की बुद्धि से चंद्रगुप्त मौर्य ने एक बार फिर भारतवर्ष को फिर से एकजुट कर एकछत्र के नीचे ला खड़ा किया। बाद में सम्राट अशोक तक राज्य अच्छे से चला। अशोक के बाद भारत का पतन होना शुरू हुआ।
नए धर्म और संस्कृति के अस्तित्व में आने के बाद भारत पर पुन: आक्रमण का दौर शुरू हुआ और फिर कब उसके हाथ से सिंगापुर, मलेशिया, ईरान, अफगानिस्तान छूट गए पता नहीं चला और उसके बाद मध्यकाल में जब भारत पर विदेशियों का आक्रमण हुआ तो संपूर्ण क्षेत्र में हिन्दुओं का धर्मांतरण किया जाने लगा और अंतत: बच गया हिन्दुस्तान। धर्मांतरित हिन्दुओं ने ही भारतवर्ष को आपस में बांट लिया।
अब बात आती है भारत का नाम इंडिया केसे पड़ा दरअसल, भारत को ‘इंडिया’ कहे जाने का आधार ‘सिंधु घाटी सभ्यता’ और ‘सिंधु नदी’ है। दुनिया की बड़ी नदियों में से एक सिंधु नदी जो पाकिस्तान, चीन और भारत में बहती है। इस नदी को संस्कृत में ‘सिंधु’ और अंग्रेज़ी में ‘इंडस’ कहा जाता है। इसी ‘इंडस’ शब्द से ‘इंडिया’ शब्द बना है। परंतु भारतीयों ने इंडिया नाम को स्वीकार नहीं किया लेकिन 18वी सदी में जब अंग्रेज भारत आए थे तो उस समय भारत को हिंदुस्तान, हिन्द और भारत ही कहा जाता था, परन्तु अंग्रेज़ों को भारत के इन सभी पुराने नामों को बोलने में काफ़ी परेशानी होती थी। जब अंग्रेज़ों को पता चला कि प्राचीन ‘सिंधु घाटी सभ्यता’ को ‘इंडस वैली’ और ‘सिंधु नदी’ को ‘इंडस नदी’ कहते हैं तो इसके आधार पर अंग्रेज़ों ने भारत को ‘इंडिया’ नाम दे दिया। अंग्रेज़ों ने भारत को ‘इंडिया’ कहना शुरू कर दिया| इसके बाद ब्रिटिशकाल में ‘इंडिया’ नाम काफ़ी प्रसिद्ध हो गया। दुनिया के लगभग सभी देश भारत को ‘इंडिया’ के नाम से जानने लगे थे इस तरह से भारत का नाम ‘इंडिया’ पड़ा। और आजादी के बाद भारत सरकार ने भी इस नाम को स्वीकार कर लिया और हमारे संविधान में इंडिया और भारत नाम लिखे गए अर्थात इंडिया जो भारत है..। इस प्रकार से इंडिया नाम केवल अंग्रेजो ने अपनी सहूलियत के लिए रखा।
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