भारत प्राचीन स्वर्ण शिक्षा प्रणाली और उसका पतन

 

भारत प्राचीन स्वर्ण शिक्षा प्रणाली और उसका पतन/ India's ancient golden education system and its decline

क्या आपको पता है भारत में वर्तमान में जो शिक्षा प्रणाली चल रही है उसकी शुरुआत कहां से हुई और कैसे अंग्रेजी ने हमारी प्राचीन भाषाओं की जगह ले ली। खासकर संस्कृत जो हमारे वेदों और ग्रंथो में लिखी है वो अब बस वही तक सीमित रह गई है और ऐसा लगता है कि आने वाले समय में हिंदी बोलना भी लोग कम पसंद करेगे, ज्यादा अंग्रेजी को महत्व दिया जाने लगेगा।आखिर ये अंग्रेजी की शुरुआत कहा से हुई जिसने हमारे जैसे एक आध्यात्मिक देश की पहचान ही बदल डाली और आज सभी लोग अपने बच्चो को अंग्रेजी स्कूल में डालना चाहते है और अपने बच्चो को अंग्रेजी बोलना सीखना चाहते है क्योंकि लोगो की ये सोच बन गई है कि जो अंग्रेजी बोलता है वहीं पढ़ा लिखा है। आज इस ब्लॉग में आपको यही बताया जाएगा कि इस सब की शुरुआत कहा से हुई और साथ ही साथ प्राचीन भारत की शिक्षा कैसी थी यह भी बताया जाएगा।

चलिए फिर भारत के इतिहास की तरफ चलते हैं की अंग्रेजी की शुरुआत कैसे हुई - भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार लॉर्ड मैकाले और कुछ भारत के उच्च पदों पर स्थित स्वार्थी लोगों को दिया जाए तो इसमें कोई ग़लत बात नहीं है। चलिए शुरुआत से बात करते है 24 अगस्त, 1608 को व्यापार के उद्देश्य से भारत के सूरत के बंदरगाह पर अंग्रेजो का आगमन हुआ था, पर भारत की शिक्षा प्रणाली में हस्तक्षेप ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा 1813 में लाए गए एक आज्ञा पत्र  से किया गया इसके बाद भारत में प्राचीन शिक्षा प्रणाली(भारतीय) और पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली(विदेशी) में विवाद उत्पन हुआ। इस आज्ञा पत्र के अन्तर्गत धारा 43 में यह कहा गया कि 1 लाख रुपए की धनराशि भारत में, भारतीय शिक्षा प्रणाली पर खर्च कि जाएगी। अब विवाद ये हुआ कि भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली पर रुपए लगाए या अंग्रेजो की पाश्चात्य शिक्षा पर। अंग्रेज चाहते थे कि भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार हो क्योंकि वह उसी को श्रेष्ठ मानते थे और वह भारत को अपना गुलाम बनाना चाहते थे इसलिए वह भारत की शिक्षा, सभ्यता, संस्कृति,भाषा को बदलना चाहते थे। लेकिन भारत के लोगो ने इसका विरोध किया बस कुछ स्वार्थी लोगो को छोड़कर। इससे भारत में दो विचारधाराओं का जन्म हुआ एक प्राच्य(भारतीय) विचारधारा और एक पाश्चात्य(विदेशी) विचारधारा, यह विवाद चलता रहा फिर सन 1834 में लार्ड वेंटेक जो कि अंग्रेजो की संसद के सदस्य थे उन्होंने लार्ड थॉम्स बेबिंगटन मैकाले(टी.बी मैकाले) को इस विवाद का समाधान निकालने के लिए बुलाया। लार्ड मैकाले अंग्रेजो के बहुत प्रसिद्ध विद्वान थे। मैकाले को कानूनी सलाहकार बनाया गया और उन्हें यह काम सौंपा गया। मैकाले ने भारत के समाज, यहां की संस्कृति, शिक्षा पद्धति,और विचारों का अध्ययन किया 

भारत प्राचीन स्वर्ण शिक्षा प्रणाली और उसका पतन/ India's ancient golden education system and its decline
आधुनिक और प्राचीन शिक्षा प्रणाली


Prachin Bharat ke nam ka itihas/ प्राचीन भारत के नाम का इतिहास


 2 फरवरी 1835 में उन्होंने अपना विवरण लार्ड वेंटेक को प्रस्तुत किया इस विवरण में कहा गया कि प्राच्य(भारतीय) शिक्षा प्रणाली को जब बहुत ज्यादा आवश्यकता होगी तभी रुपए दिए जाएंगे बाकी सारे रुपए विदेशी शिक्षा पर लगाया जाएगा क्युकी लार्ड मैकाले अंग्रेजी शिक्षा, साहित्य को ही सर्वश्रेष्ठ मानता था। और फिर 7 मार्च 1835 को लॉर्ड वेंटेक ने मैकाले का विवरण स्वीकार किया और उसे देश में पारित कर दिया। अंग्रेज़ तो शुरू से ही भारत को अपना गुलाम बनाना चाहते थे इसी के चलते अंग्रेजो ने भारत की भाषा, संस्कृति और भारत की शिक्षा पर विदेशी प्रभाव डालना प्रारम्भ किया।

प्राचीन शिक्षा व्यवस्था का पतन -

अब बात आती कि वर्तमान में जो विदेशी शिक्षा प्रणाली चल रही है उससे पूर्व भारत में केसी शिक्षा प्रणाली थी ? और क्यों अंग्रेज उसे बदलने पर मजबुर हुए ?एसी ही सभी बातो का जवाब एक अंग्रेज के द्वारा भारत की शिक्षा व्यवस्था पर बनाई गई एक रिपोर्ट में दिया गया है जिसका कुछ विवरण में आपको करती हूं।

ब्रिटिशकाल में एक अंग्रेज अधिकारी भारत आया जो लगभग 40 वर्ष भारत में रहा, उसका नाम था विलियम एडम, वह बहुत उच्च स्तर का अधिकारी था, अंग्रेजो की संसद का जो एक हिस्सा है हाउस आफ लार्ड्स उसमे बहुत दिनों तक वो सांसद था,और भारत में उसको बहुत उच्च स्तर का अधिकारी बनाकर भेजा गया था। इसके नीचे ही टी.बी मैकाले काम करता था। यानी एडम, मैकाले का बॉस था। विलियम एडम और मैकाले ने भारत की शिक्षा व्यवस्था को जानने के लिए यहां की शिक्षा व्यवस्था की एक रिपोर्ट तैयार की, वह रिपोर्ट लगभग 1780 पेज की थी, और वह रिपोर्ट अंग्रेजो की संसद यानी हाउस ऑफ कॉमन्स में पेश की गई और इस रिपोर्ट के आधार पर अंग्रेजो को पता चला कि भारत की शिक्षा व्यवस्था केसी है। आप जानते है कि हाउस आफ लॉर्ड्स और हाउस ऑफ कॉमन्स में जो भी बहस होती है वो सभी रिकॉर्ड में रहती है और जो रिकॉर्ड में आ जाती है वो उनका दस्तावेज बन जाती है और फिर ब्रिटिश पार्लियामेंट की एक प्रेस है जिसको हनसार्ड कहते है वो जरूरत पड़ने पर समय समय पर इन डॉक्युमेंट्स या दस्तावेजों को प्रकाशित करती है। आज उन्हीं दस्तावेजों में से भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था का वर्णन करुगी।

             मैकाले के द्वारा यह कहा गया है कि उसने पूरा भारत देश घुमा है पर उसे भारत में कोई भिखारी नहीं दिखा और कोई ऐसा व्यक्ति नहीं दिखा जो दूसरे पर आश्रित हो। यह ज्यादा पुरानी बात नहीं है 1835 की बात है। और मैकाले कहता है कि उसने दुनिया के कई बड़े शहर फ्रांस, स्पेन, जर्मनी और लंडन देखे पर एक भी ऐसा देश नहीं देखा जो भारत के एक शहर सूरत जितनी संपत्ति रखता हो इतनी संपत्ति उसने भारत के 1 शहर सूरत में देखी। और वो कहता है कि इतनी संपत्ति या धन किसी शहर या देश में हो उस देश को गुलाम बनाना बहुत मुश्किल है। इसलिए वह ब्रिटिश गवर्नमेंट को एक सुझाव देता है कि भारत को तभी गुलाम बनाया जा सकता है जब उसका धन, वैभव और संपत्ति को खत्म किया जाए और इसके लिए भारत की शिक्षा व्यवस्था को खत्म करना होगा उसका मानना था कि भारत की शिक्षा व्यवस्था ही भारत की नीव है, वहीं यहां के लोगो को सक्षम बनाती है, उसी से भारत में धन, वैभव और संपत्ति है और कोई बेरोजगार भी नहीं है।और वह कहता है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था की सबसे बड़ी महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत में निरक्षरता नहीं है वहीं दक्षिण भारत में 100% लोग पढ़े लिखे हैं, पूर्व भारत में 98% लोग, उत्तर भारत में 82% लोग और मध्य भारत में लगभग 87% लोग उस समय पढ़े लिखे थे। फिर वो इंग्लैंड की साक्षरता बताता है कि इंग्लैंड यानी ब्रिटेन में उस समय साक्षरता दर केवल 17% थी। और इस रिपर्ट में यह भी कहा गया कि भारत के हर गांव में एक स्कूल है स्कूल यानी गुरुकुल जहां भारतीय शिक्षा पढ़ाई जाती थी और उस समय इंग्लैंड में स्कूल भी नहीं थे कहीं थे भी तो वहां बस बाइबिल ही पढ़ाई जाती थी क्योंकि अंग्रेज प्लेटो नामक विद्वान के छनन के सिद्धांत को मानते थे। प्लेटो की दो किताबें विश्व प्रसिद्ध है जिसका नाम है द रिपब्लिक(The republic) और दूसरी हे लॉस(laws) और द रिपब्लिक में प्लेटो ने छनन का सिद्धांत दिया। इस सिद्धांत के अनुसार शिक्षा केवल राजा और उसके करीबी वर्ग को ही दी जाए, प्लेटो का मानना था कि इससे निचले वर्ग को शिक्षा, इनके द्वारा छन कर मिल जाएगी, यानी वो केवल प्रभु वर्ग को ही शिक्षा देने के लिए कहता है, बाकी लोगों को तो इनके आदेश का पालन करना है तो इतनी शिक्षा की जरूरत ही नहीं, ऐसा करने से रुपए भी कम लगेंगे और जितनी निचले वर्ग को शिक्षा की जरूरत होगी उतनी शिक्षा भी प्राप्त हो जाएगी, परन्तु ऐसा हुआ नहीं। इन राजाओं को शिक्षा इनके घर में ही दी जाती थी इसलिए वहां स्कूल भी नहीं बनाए गए। प्लेटो का छनन का सिद्धांत गलत साबित हुआ।

ndian languages and diversity/ bharat ki bhashae or vividhata


भारत प्राचीन स्वर्ण शिक्षा प्रणाली और उसका पतन/India's ancient golden education system and its decline


इस रिपोर्ट मैं यह भी कहा गया है कि भारत में पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों की साक्षरता दर अधिक है खासकर दक्षिण भारत में स्त्रियों की साक्षरता दर सबसे अधिक है इसका मूल कारण यही है कि भारत में स्त्रियों की जनसंख्या पुरुषों से अधिक है इसके प्रमाण भी है जब अंग्रेजों ने पहली बार 1881 मैं भारत की जनगणना कराई तो उसमें स्त्रियों की जनसंख्या 53% वहीं पुरुषों की 47% थी। स्त्रि ए केयां ही नहीं भारत के हर गुरुकुल में चार वर्ण के विद्यार्थी पढ़ते हैं जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र यह चारों ही वर्ण के विधार्थी भारत के गुरुकुल में पढ़ते हैं और इसमें बताया गया है कि भारत के प्रत्येक गुरुकुल में विद्यार्थियों की संख्या 200 से 20000 तक होती थी। और इतने विद्यार्थियों की शिक्षा मॉनिटरिंग पद्धति द्वारा की जाती थी जैसे एक शिक्षक ने 50 विद्यार्थियों को पढ़ा कर तैयार किया फिर वह 50 विद्यार्थी अपने से निचले स्तर के 50 विद्यार्थियों को पढ़ाते और वह 50 अपने से  ंटनीनीचे वालों को, इस प्रकार 20000 विद्यार्थियों के गुरुकुल सही तरीके से संचालित होते थे और कम अध्यापको के द्वारा भी 20000 विद्यार्थियों की संख्या वाले गुरुकुल को आराम से संभाला जाता था। इन 20000 संख्या वाले गुरुकुल के अध्यापक को कुलपति कहा जाता था। और इन सभी गुरुकुल के साथ उच्च अध्ययन केंद्र जुड़े थे जो इन अध्यापकों को तैयार करते थे। भारत के गुरुकुल में 18 विषय पढ़ाए जाते थे जिसमें वैदिक गणित और खगोल शास्त्र को मुख्य रूप से पढ़ाया जाता था। इसके है अलावा धातु विज्ञान, कारीगरी(लोहा,सोना,लकड़ी,वास्तु कला आदि 18 प्रकार के काम), खगोल भौतिकी,रसायन शास्त्र, चिकित्सा शास्त्र(ओषधि विज्ञान,शल्य क्रिया), कृषि विज्ञान ऐसे करके 18 विषय पढ़ाए जाते थे। गुरुकुल में विद्यार्थी 5 वर्ष की आयु में जाता था और 21 या 22 वर्ष की आयु में पूर्ण शिक्षा प्राप्त कर घर जाता था।एक-एक कर उसे हर विषय पढ़ाया जाता था लगभग 1 साल तक एक विषय पढ़ाया जाता था। फिर अध्यापक विद्यार्थी की परीक्षा लेने के तौर पर उस विषय से संबंधित कोई काम विधार्थी को देता था, उसके आधार पर विद्यार्थी को परखा जाता था। ऐसे एक-एक करके सभी विषय पढ़ाए जाते थे। प्राचीन काल में वर्तमान की तरह 3 घंटे पेपर पर रटा- रटाया लिखने वाली परीक्षा पद्धति नहीं थी।

भारत प्राचीन स्वर्ण शिक्षा प्रणाली और उसका पतन/ India's ancient golden education system and its decline
भारत प्राचीन स्वर्ण शिक्षा प्रणाली

भारत मैं प्राचीन काल में 7,32000 गुरुकुल थे वहीं इंग्लैंड मैं उस समय 240 स्कूल भी नहीं थे और कुछ जो थे वहां गणित तो दूर की बात वहां बस एक ही विषय था जोकि बाइबिल और इन स्कूल को वहा सन्डे स्कूल(sunday school) कहा जाता है जो आज भी वहा पर मिल जायेगे। इंग्लैंड मैं 16वीं शताब्दी तक कोई भी स्कूल नहीं था। और इस रिपोर्ट में भारत की शिक्षा का वर्गीकरण भी मैकाले करता है। यानी किस प्रकार का ज्ञान इन गुरुकुल में पढ़ाया जाता है, मैकाले ने देखा कि भारत में वो किसी भी गुरुकुल में जाता है और बच्चो से पूछता है की क्या पढ़ रहे हो तो गुरुकुल के बच्चे कहते हम शिक्षा ग्रहण कर रहे और कुछ बच्चे कहते की हम विद्या ग्रहण कर रहे। तो इससे उसे यह तो स्पष्ट होगया कि दो प्रकार का ज्ञान गुरुकुल में पढ़ाया जाता है एक शिक्षा और दूसरा विद्या। परंतु उसे इन दोनों में क्या फर्क है यह समझ नहीं आया। वर्तमान में भी यही स्थिति बन गई है लोग शिक्षा और विद्या का असली मतलब नहीं जानते, इन दोनों में क्या फर्क है यह बहुत कम लोग जानते होगे। में आपको बताती हूं दोस्तो, वर्तमान में सभी स्कूल विद्यालय कहे जाते है विद्यालय और महाविद्यालय, पर ये काम शिक्षालय का करते हैं लेकिन कहते इनको विद्यालय हैं। हमने इन दो शब्दो की खिचड़ी बनाकर रख दी है। क्युकी हम पर भी मैकाले का असर है शायद, हम जानते ही नहीं है कि शिक्षा क्या होती है और विद्या क्या होती है। विद्या अपनी ज़िन्दगी को अध्यात्म के रास्ते में ले जाने वाली, आत्मा का जो परमात्मा से मेल कराने वाली, हमें धर्म- अधर्म,न्याय- अन्याय,छोड़ने लायक क्या है और ग्रहण करने लायक क्या है इन सब बातो का विवेक देने वाली विद्या है, विद्या हमें आध्यात्मिक बनाती है और हमारी मृत्यु के बाद आत्मा का परमात्मा से मेल कराती है और इसके अलावा हम गणित, रसायन विज्ञान,धातु विज्ञान या और भी कोई विषय पढ़ते है तो वो सब शिक्षा है। यही फर्क है विद्या और शिक्षा में। और मैकाले भी जानता था कि यह जो विद्या है वो शिक्षा से ऊंची है यानी विद्या ज्यादा महत्वपूर्ण है क्युकी वह किसी भी गुरुकुल में जाता तो बच्चे स्वय को विद्यार्थी ही कहते कोई भी शिक्षार्थी कहना पसंद नहीं करता क्युकी वो मूल रूप से जो सीखने जाते थे वो विद्या सीखने जाते थे, खाली गणित, रसायन ज्ञान या खगोल ज्ञान सीखने नहीं जाते। इसलिए ये स्वय को विद्यार्थी कहते। तो मैकाले भी समझ गया कि विद्या ऊंची है शिक्षा से। और मैकाले विवरण में लिखता है की भारत में 15,800 के करीब विश्व विद्यालय है, अंग्रेजो की भाषा के अनुसार विश्वविद्यालय और यहा जितने भी विश्वविद्यालय हैं, यह किसी एक विषय के निपुण है जैसे - अमरावती विश्वविद्यालय धातु विज्ञान के लिए मशहूर था यहां कई आचार्य यानी शिक्षक थे जो कच्चे लोहे से फोलाद बनाना, जमीन से लोहा, तांबा, चांदी आदि का निष्कर्षण कैसे किया जाए यह सब सिखाया जाता था यानी आज जो हमारे आईआईटी(IIT) में सिखाया जाता है वही उस समय के भारत में सिखाया जाता था। फिर दूसरे विश्वविद्यालय का वर्णन है जो है कांगड़ा विश्वविद्यालय, कांगड़ा यानी हिमाचल, यह विश्वविद्यालय सर्जरी के लिए प्रसिद्ध था और इस सर्जरी को आज के शब्दों में कहे तो रायनो प्लास्टिक, जो 21वी सदी का लेटेस्ट साइंस है जिसमें हमारे शरीर के किसी भी अंग की चमड़ी को निकालकर दूसरे अंग पर लगा दिया जाता है। वह लिखता है वहां यह सब सिखाया जाता है और उसने अपनी आंखों से देखें ऑपरेशन की व्याख्या भी की है मैकाले इन सर्जरी के उपकरणों की भी व्याख्या करता है वह कहता है कि सामान्य रूप से एक आचार्य, यानी आज के टाइम का मास्टर ऑफ सर्जन(MS) उस ज़माने का आचार्य, इनके पास 500 उपकरण तो होते ही हैं और सभी उच्च स्तर के लोहे की बनी हुई जिनमें कभी जंग नहीं लगता।


भारतीय बिना जंग का लोहा बनाना तो 10 वीं शताब्दी से जानते हैं और प्रमाण आज भी देखना है तो देखें महरोली का खंभा आज भी खड़ा है। मैकाले लिखता है कि भारत के सभी आचार्य कहते थे कि जीवन एकांगी नहीं है और एकांगी नहीं है तो इसमें सब तरह के ज्ञान की जरूरत होती है, विद्यार्थी को सब तरह का ज्ञान होना चाहिए विशेषज्ञता किसी एक में होने चाहिए, ज्ञान उसको सब तरह का होना चाहिए। वो कहता है कि भारत के गुरुकुल में किसी भी विषय का जो शुरुआती ज्ञान है वह सभी विद्यार्थियों को दिया जाता है जब विद्यार्थियों की रुचि उत्पन्न हो जाती है तो किसी एक विषय में उसे विशेषज्ञ बना दिया जाता है और फिर उसे समाज में भेज दिया जाता है उसकी शिक्षा और विद्या पूरी हो जाती है फिर वह समाज को अपनी सेवाएं देता है। और वह एक बहुत विशेष बात विवरण में बताता है कि जब भारत के विधार्थी गुरुकुल से पढ़ कर निकलते हैं तो उन्हें संकल्प कराया जाता है कि भारत में ऐसा मानते हैं कि यह जो ब्रह्मांड जगत है इसमें केवल मनुष्य ही नहीं है और भी बहुत से प्राणी है पशु- पक्षी, जीव- जंतु है और सभी भारतवासी मानते हैं कि इन सभी जीवो में भी आत्मा है इसलिए हमे इनकी भी रक्षा करनी चाहिए, इनके प्रति भी हमारा कर्तव्य है। तो दोस्तों अब बात करते हैं प्लेटो की प्लेटो क्या कहता है अपनी पुस्तक द रिपब्लिक में की आत्मा केवल राजा में होती हैं प्रजा में आत्मा ही नहीं होती इसलिए कानून सिर्फ प्रजा के लिए है राजा सिर्फ आदेश देता है यानी प्रजा को बस राजा के आदेश का पालन करना है और प्लेटो कहता है कि गलती से प्रजा में आत्मा आ भी जाए तो वह स्त्रियों में कभी नहीं आती इसलिए वह अपनी किताब लॉज में लिखता है कि कभी भी किसी न्यायाधीश को किसी स्त्री की गवाही पर विचार ही नहीं करना चाहिए क्योंकि स्त्री को सत्य का ज्ञान नहीं होता है उसमें विवेक नहीं है क्योंकि उसमें तो आत्मा ही नहीं है। क्या आप जानते हैं यह जो मॉडर्न judicial system निकला जिसमें से IPCC, CRPC और CPC आया, हमने बिना सोचे समझे अपने देश में अपनाया इस ज्यूडिशल सिस्टम में 1950 तक किसी महिला की गवाही को माना ही नहीं जाता था, यूरोप में अदालत में चलने वाले किसी मामले में महिला की गवाही नहीं मानी जाती थी, फिर यूरोप में बगावत हुई जिसे वूमेंस लिव(woman's live) कहा जाता है और जिसका नेतृत्व किया फ्रांसीसी लेखिका जिसका नाम था सिमोंदा बौउआ। यह आंदोलन कई साल चला इसका नतीजा यह निकला कि किसी तीन स्त्री की गवाही को एक पुरुष के बराबर यूरोप और ब्रिटेन में माना जाने लगा इसके बाद इनका निधन हो गया और यूरोप में 1950 तक महिलाओं को वोट डालने का अधिकार भी नहीं था और इस समय तक यूरोप में कोई भी महिला अकेले घर से बाहर नहीं जा सकती थी क्योंकि उसमें तो आत्मा ही नहीं है तो कहां जाएगी।


Prachin Bharat ke nam ka itihas/ प्राचीन भारत के नाम का इतिहास


भारत प्राचीन स्वर्ण शिक्षा प्रणाली और उसका पतन/India's ancient golden education system and its decline


मैकाले विवरण में लिखता है कि भारत में तो आधे से ज्यादा गुरुकुल में महिलाएं ही गुरुकुल की आचार्य है और वह बताता है भारत में मानते हैं कि एक स्त्री ही परमात्मा के सबसे निकट होती है क्योंकि उसमें पुरुष से कुछ ज्यादा गुण होते हैं, हमारे कई वेदों, शास्त्रों में हम देख सकते हैं जैसे- ऋग्वेद में कई शुत्र ऐसे हैं जो बताते हैं कि स्त्री में ईश्वरीय गुण होते हैं इसलिए वह पुरुष से ऊंची होती है और आज का जो आधुनिक विज्ञान है उसमें दूसरी तरह से कहा गया है कि स्त्री में एक क्रोमोसोम ज्यादा होता है वहीं पुरुष में नहीं होता, स्त्री तय करती है कि बच्चा होगा या नहीं होगा, पुरुष में कोई दम नहीं, यह आज की मॉडल साइंस कहती है। हमारे प्राचीन काल में तो यह चीज बहुत पहले ही कही जा चुकी है कि स्त्री परमात्मा के सबसे करीब है इसलिए उसमें ईश्वरीय गुण है और मैकाले ने एक सूत्र या एक बात सुनी भारत के लोगों से कि भारत के लोग ऐसा कहते हैं कि स्त्री के बिना मोक्ष नहीं मिलती भारत के लोग उस समय मानते थे कि स्त्री के जीवन में आने के बाद ही पुरुष पवित्र होता है तभी वह अपने सारे संस्कार स्त्री के संग करता है और अंत में मोक्ष प्राप्त करता है और एक बात मैं और बता दूं कि हमारे लगभग सभी ऋषि मुनि गृहस्थ थे ब्रह्मचारी नहीं थे। और वह अपने विवरण में बताता है कि भारत में अगर स्त्री नहीं है तो परिवार नहीं है, समाज, संस्कार, भाषा, ज्ञान भी नहीं है इसलिए भारत में स्त्रियां तो बहुत ऊंची थी इसलिए गुरुकुल में आचार्य स्त्रियां अधिक थी


विलियम एडम विवरण में बताता है कि भारत के गुरुकुल में पढ़ने वाले विद्यार्थी और उनके आचार्य सही शिक्षा प्राप्त कर समाज के कई कार्य करते थे जैसे- आंध्र प्रदेश में कावेरी नदी के पास एक गुरुकुल था, जो कि लगभग 12वीं शताब्दी का था, और वो गुरुकुल था सिविल इंजीनियरिंग का और इस गुरुकुल के विद्यार्थी व आचार्यों ने मिलकर कावेरी नदी पर एक बांध बनाया है जो दुनिया का सबसे पहला बांध है जोकि अंग्रेजी के अक्षर जेड(Z) की तरह बनाया गया है और आज भी यह बांध जीवित है, उस बांध पर एक पत्थर लगा हुआ है जिस पर तेलुगु भाषा में लिखा है कि सन 1238 में वह बना है, पत्थर और चूने से बांध को बनाया गया है और आप जानते हैं दक्षिण भारत में सबसे तेज प्रवाह वाली नदी कावेरी ही है, जिसमें साल के 12 महीने पानी बहता है यानी हमारे गुरुकुल के विद्यार्थियों और शिक्षकों या आचार्यों ने 12वीं शताब्दी में ही कावेरी जैसी तेज बहाव वाली नदी पर बांध बना दिया जो आज तक जीवित है तो हम सोच सकते हैं कि प्राचीन भारत के गुरुकुल की शिक्षा वहां की व्यवस्था कितनी मजबूत थी और भारत में हजारों तालाब, गौशाला, बांध, धर्मशालाएं आदि कई समाज उपयोगी चीजें विद्यार्थियों ने आचार्यों के साथ मिलकर बनाई थी। विलियम एडम विवरण में लिखता है कि भारत के गुरुकुल केवल शिक्षा का केंद्र ही नहीं है बल्कि यह गुरुकुल अपने विद्यार्थियों के साथ मिलकर समाज के बड़े काम अपने ज्ञान और कौशल से करते हैं जो काम वर्षों- वर्षों तक भारतीयों के बहुत उपयोग में आते है इसलिए अंग्रेज सोचते हैं कि इस तरह भारत को गुलाम बनाना नामुमकिन है इसलिए विलियम एडम और मैकाले का सुझाव होता है कि जब तक भारत की शिक्षा व्यवस्था को हम खत्म नहीं करेंगे तब तक भारत को गुलाम बनाया नहीं जा सकता। इसी के चलते अंग्रेजों की संसद में कानून बना, इंडियन एजुकेशन एक्ट यह पारित हुआ बाद में भारत की संसद में पारित हुआ और इसे लागू किया गया तो उसमें यह तय किया गया कि जितने भी गुरुकुल में संस्कृत माध्यम से जो शिक्षा दी जाती है वह गैरकानूनी है, फिर कहां गया कि जहां स्थानीय भाषा में शिक्षा दी जाती है वह भी गैरकानूनी होगी और जहां अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दी जाती है वह कानूनी होगी। मैकाले ने भारत में यह कानून लागू करके भारत के गुरुकुल का नाश किया और यह नाश अंग्रेजों ने लगभग 100 साल तक किया और भारत के गुरुकुलो को समाप्त कर डाला, कहीं-कहीं आचार्यों ने और भी कुछ लोगों ने विरोध किया तो उनके हाथ- पैर, गल्ला काट दिए गए।

Bharat ki bhashae or vividhata


भारतीय प्राचीन गुरुकुल, ज्ञान आधारित होते थे नाकि डिग्री आधारित, अंग्रेजो ने हमें उल्टा फसा दिया, ज्ञान आधारित हिंदुस्तान को, डिग्री में फंसा दिया। अब तो हम किसी भी परीक्षा में जाते हैं तो यही होता है कि हमारे पास डिग्री क्या है। डिग्री का पहले कोई महत्व नहीं था, चरक ऋषि की क्या डिग्री थी, सांख्य दर्शन जिन्होंने दिया उनकी क्या डिग्री थी, खगोल शास्त्र में इतने बड़े रिसर्च हो गए 14वी शताब्दी में ही, हिंदुस्तानियों ने यह बता दिया कि प्लूटो ग्रह नहीं है, अब दुनिया मानने लगी है कि प्लूटो ग्रह नहीं है, सूर्य की दूरी पृथ्वी से कितनी है यह आज बोलते हैं लोग और 9वीं शताब्दी में ही हिंदुस्तानियों को मालूम था की सूर्य की पृथ्वी से कितनी दूरी है। तो यह इतनी बड़ी बातें बताने वाले जो लोग थे, जो ऋषि मुनि थे, इनमें से किसी के पास कोई डिग्री नहीं थी, बस ज्ञान था। इसलिए ज्ञान ऊंचा होता है डिग्री नहीं होती। परन्तु वर्तमान में भारत में जो शिक्षा नीति चल रही है उसके कारण सभी लोग डिग्री के पीछे भाग रहे हैं और वही रटा रटाया ज्ञान हमें पढ़ाया जाता है। दोस्तों आप भी सोचे ऐसी शिक्षा का क्या मतलब है आखिर जो हमें सशक्त नहीं बनाती जो हमें प्रैक्टिकल नॉलेज नहीं देती जो सिर्फ किताब में लिखी बाते छापना सिखाती हो, इसलिए इस शिक्षा नीति को बदलने की बहुत जरूरत है क्योंकि तभी भारत के लोग आत्मनिर्भर होंगे और लोगों को सही मायने में ज्ञान क्या होता है उसकी समझ होगी। वैसे अभी कुछ ही दिनों पहले नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा मोदी सरकार ने की है उम्मीद है कि मोदी जी कुछ अच्छा ही लेकर आएगे जो भारतीयों को उनकी जड़ों से लेकर आधुनिकता तक पहुंचाएगा।


Translation in English is below-


India's ancient golden education system and its decline

Do you know where the education system currently in India started and how English has replaced our ancient languages. Especially Sanskrit which is written in our Vedas and texts, it is now limited to that and it seems that in the coming time people will like to speak Hindi less, more English will be given importance. Which changed the identity of a spiritual country like ours and today everybody wants to put their children in English school and wants to learn to speak English to their children because it has become the thinking of the people that who speaks English, read there written. Today, in this blog, you will be told that it all started with where it was and also how the education of ancient India was.


Let's go back to the history of India as to how English started - if there is anything wrong in spreading English education in India to Lord Macaulay and some selfish people in high positions in India. Let's talk from the beginning, on 24 August 1608, the British arrived at the port of Surat, India for the purpose of trade, but India's education system was interfered with an order issued by the British Parliament in 1813. Controversy arose in the ancient education system (Indian) and Western education system (foreign). Under this order, it was stated in section 43 that an amount of 1 lakh rupees will be spent in India on the Indian education system. Now there was a dispute whether to put money on India's ancient education system or on western education of the British. The British wanted English education to spread in India because they considered it superior and wanted to make India their slave, so they wanted to change the education, civilization, culture, language of India. But the people of India opposed it except for a few selfish people. This led to the birth of two ideologies in India, an oriental (Indian) ideology and a western (foreign) ideology, this controversy continued. In 1834, Lord Vantec, who was a member of the British Parliament, he led Lord Thomas Bebbington Macaulay (T. B. Macaulay) ) To resolve the dispute. Lord Macaulay was a very famous English scholar. Macaulay was made legal advisor and assigned to the job. Macaulay studied India's society, its culture, education system, and ideas.

 On 2 February 1835, he presented his details to Lord Vantec, in this statement it was said that when the Oriental (Indian) education system is in great need, only the rupees will be given, the rest of the rupees will be applied to foreign education, because Lord Macaulay will teach English education and literature. He considered it the best. And then on 7 March 1835, Lord Vantec accepted Macaulay's account and passed it into the country. The British wanted to make India their slave from the beginning, due to which the British started to exert foreign influence on the language, culture and education of India.


  • Fall of ancient education system -

Now it would be said that before the foreign education system that is currently in operation, how was the education system in India? And why the British were compelled to change it? AC is the answer to all things in a report made by an Englishman on India's education system, which I will give you in some detail.


In the British era, an English officer came to India who lived in India for almost 40 years, his name was William Adam, he was a very high level officer, he was an MP for a long time in the House of Lords, which is a part of the British Parliament, and India I was sent as a very high level officer. TB Macaulay used to work under this. That is, Adam was Macaulay's boss. William Adam and Macaulay prepared a report on the education system of India to know about the education system, that report was about 1780 pages, and that report was presented in the British Parliament or the House of Commons and the basis of this report But the British came to know that how is the education system of India. You know that any debate that takes place in the House of Lords and the House of Commons remains in the record and whatever comes in the record becomes their document, and then there is a press of the British Parliament called Hansard. It publishes these documents or documents from time to time when it falls. Today, from the same documents, I will describe the ancient education system of India.


            It has been said by Macaulay that he has roamed the whole of India, but he did not see any beggar in India and no one who is dependent on another. It is not an old thing of 1835. And Macaulay says that he saw many big cities of the world, France, Spain, Germany and London, but not a single country which had as much wealth as one city of India, Surat, saw it in 1 city of India. And he says that it is very difficult to enslave that country with so much wealth or wealth in a city or country. Thereforee gives a suggestion to the British Government that India can be enslaved only when its wealth, splendor and wealth is destroyed and for this the education system of India has to be abolished. It is the foundation of the people, which enables the people here, there is wealth, wealth and wealth in India and there is no unemployment, and he says that the most important thing in India's education system is that illiteracy in India There is no 100% educated in South India, 98% in East India, 82% in North India and about 87% in Central India. Then he states that the literacy rate in England was only 17% in England at that time. And in this report it was also said that in every village of India there is a school, ie the Gurukul where Indian education was taught and there were no schools in England at that time, even then only Bible was taught because the British called Plato The scholar believed the principle of filtering. Two of Plato's books are world famous, namely The Republic and the other laws and Plato gave the theory of filtering in The Republic. According to this theory, education should be imparted only to the king and his close class, Plato believed that this would give education to the lower class, through this, that is, he only asks to teach to the lord class, the rest of the people If they have to follow their orders, then there is no need for this much education, by doing this the money will also be less and the lower class will need education, but it has not happened. Education was given to these kings in their homes, so schools were not built there. Plato's theory of filtering proved to be wrong


India' s ancient golden education system and its decline


It has also been said in this report that women have higher literacy rate than men in India, especially South India has the highest female literacy rate, this is the main reason that women in India have more population than men. When the British first conducted a census of India in 1881, it had 53% of the female population and 47% of the males. Not only women, students of four varnas read in every Gurukula of India, in which Brahmins, Kshatriyas, Vaishyas and Shudras study in the Gurukul of India, and it is told that the number of students in each Gurukul of India is 200 Used to be up to 20000. And so many students were taught by the monitoring method, like a teacher prepared 50 students by teaching them, then that 50 students would teach 50 students below their level and that 50 were below those, thus gurukul of 20000 students They were operated properly and Gurukul, with a strength of 20000 students, was handled comfortably even by less teachers. The teacher of these 20,000 numbered Gurukuls was called the Chancellor. And all these gurukuls were associated with centers of higher learning which prepared these teachers. The Gurukul of India taught 18 subjects in which Vedic mathematics and astronomy were mainly taught. Apart from this, 18 subjects were taught by doing metallurgy, workmanship (18 types of works like iron, gold, wood, architectural arts etc.), astrophysics, chemistry, medicine (medical science, surgery), agricultural science. In Gurukul, the student used to go at the age of 5 and went home after getting full education at the age of 21 or 22. He was taught every subject one by one and taught a subject for about 1 year. Then, as the teacher takes the student's examination, any work related to that subject was given to the student, based on that the student was tested. All such subjects were taught one by one. In ancient times, like the present, there was no 3-hour examination on paper.

In India, there were 7,32000 gurukuls in ancient times, while there were not even 240 schools in England at that time, and some of those who were there, Mathematics was far and away there was only one subject which was called Bible and these school there sunday school. Goes which will be found there even today. England I was not a school until the 16th century. And Macaulay also classifies India's education in this report. That is, what kind of knowledge is taught in these gurukuls, Macaulay saw that in India he goes to any gurukula and asks the children what are they studying, then the children of the gurukul used to say that we are getting education and some children say that We are learning. So it made it clear to him that two types of knowledge are taught in Gurukul, one is education and the other is learning. But he did not understand the difference between these two. Presently, the same situation has become, people do not know the real meaning of education and education, very few people will know what is the difference between these two. Let me tell you friends, currently all schools are called schools and colleges, but they do the work of the school, but they say they are schools. We have made a slang for these two words because Macaulay has an effect on us too, we do not know what education is and what education is.  Knowledge is the way to take our life in the path of spirituality, the soul that matches the divine, gives us religion- unrighteousness, justice- injustice, what is worth giving up and what is worth accepting, all these things are the wisdom of wisdom,  Knowledge makes us spiritual and after our death makes the soul reconciled to the divine and apart from this, if we study mathematics, chemistry, metallurgy or any other subject, all of that is education.  This is the difference between education and education.  And Macaulay also knew that this learning is higher than education, that is, education is more important because if he went to any gurukula, then the child does not like to call himself a student as any student because he was basically going to learn.  He used to go to learn science, not to learn empty mathematics, chemistry or astronomy.  Therefore, they would call themselves students.  So Macaulay also understood that education is higher than education.  And Macaulay writes in India that there are around 15,800 universities in India, according to the English language and all the universities here, it is well-versed in any one subject like - Amravati University was famous for metallurgy.  There were teachers who were taught how to make steel from cast iron, how to extract iron, copper, silver etc. from the ground i.e. what is taught in our IITs today was taught in India at that time.  Then there is the description of another university which is Kangra University, Kangra i.e. Himachal, this university was famous for surgery and to say this surgery in today's terms, Rayano plastic, which is the latest science of 21st century in which any part of our body  The foreskin is removed and applied to another part.  He writes all this taught there and has also explained the operation with his own eyes. Macaulay also interprets these surgical instruments. He says that in general an Acharya, ie the Master of Surgeons of today's time (  MS) Acharya of that time, they only have 500 equipments and all are made of high level iron which never rust.

Indians have known to make iron without rust since the 10th century and the proof is to be seen even today, see if the pillar of Maharoli still stands.  Macaulay writes that all the Acharyas of India used to say that life is not one-sided and not one-sided, it requires all kinds of knowledge, the student should have all kinds of knowledge, expertise should be in one, all kinds of knowledge.  Should be  He says that the initial knowledge of any subject in the Gurukul of India is given to all the students, when the interest of the students arises, they are made experts in one subject and then sent to the society.  He gets his education and education complete, then he gives his services to the society.  And he tells a very special thing that when the students of India come out of the Gurukul, they are made to pledge that in India it is believed that this universe which is in the world is not only humans and many more beings  There are animals, birds, animals and all Indians believe that all these creatures also have a soul, so we should also protect them, we also have a duty to them.  So friends now talk about what Plato of Plato says in his book The Republic, the soul is only in the king, there is no soul in the subjects, therefore the law is only for the subjects, the king only gives orders, that is, the subjects are just given the king's orders  To follow and Plato says that even if the soul comes to the people by mistake, it never comes in the women, so he writes his book in the lodge that never a judge should consider the testimony of a woman because the woman  There is no knowledge of truth, there is no conscience because there is no soul in it.  Do you know that this modern judicial system came out of which IPCC, CRPC and CPC, we adopted in our country without thinking, in this judicial system, until 1950 the testimony of a woman was not considered, the court in Europe  The woman's testimony in a case was not considered, then a rebellion took place in Europe called Woman's live and led by a French writer named Simonda Baua.  This movement went on for many years, as a result of this, the testimony of any three women was treated as equal to a man in Europe and Britain, after this, they died and in 1950 women were not even entitled to vote in Europe and at this time  Till date, no woman in Europe could go out of the house alone because if she does not have a soul, where will she go.


India's ancient golden education system and its decline


Macaulay writes in the description that in India, more than half of the gurukuls are women, and he says that in India, a woman is closest to God because she has more qualities than man, many of our  We can see in the Vedas, scriptures, like - there are many sutras in the Rigveda which show that a woman has divine qualities, so she is higher than a man and in today's modern science, it is said that in a woman  There is more of a chromosome while there is not a male, a woman decides whether or not a child will be there, there is no power in the male, it says today's model science.  In our ancient times, it has been said long ago that the woman is closest to the divine, so she has divine qualities and Macaulay heard a sutra or one thing from the people of India that the people of India say that without a woman  People of India did not get salvation. At that time, people believed that only after a woman comes into life, a man becomes holy only then he performs all his rites with the woman and finally attains salvation and I can tell one more thing about our  All sages were sages and not celibates.  And he states in his description that if there is no woman in India, then there is no family, there is not even society, culture, language, knowledge, so women were very high in India, so Acharya women were more in Gurukul.

William Adam states in detail that the students studying in the Gurukul of India and their Acharya used to do many functions of the society by getting proper education like - there was a Gurukul near the river Cauvery in Andhra Pradesh, which was about 12th century, and that  The Gurukul was of civil engineering and the students and masters of this Gurukul together built a dam on the river Kaveri, which is the first dam in the world to be built like the letter Z (English) and this dam is alive even today.  There is a stone on the dam on which it is written in Telugu language that it was built in 1238, the dam is built by stone and lime and you know that the fastest flowing river in South India is the Kaveri, in which the year  12 months of water flows i.e. the students and teachers or teachers of our Gurukul built a dam in the 12th century on a fast flowing river like Kaveri, which is still alive, then we can think how much the education of the Gurukul of ancient India is there.  It was strong and thousands of ponds, cowsheds, dams, dharamshalas etc. were used in India for many social things.  The Yishyas formed together with the Acharyas.  William Adam writes in the description that the Gurukul of India is not only the center of education, but this Gurukul along with his students do big things of society with their knowledge and skills, which are used by Indians for years and years.  The British think that it is impossible to enslave India in this way, so William Adam and Macaulay suggest that India cannot be enslaved until we finish India's education system.  Due to this, a law was made in the British Parliament, the Indian Education Act was passed, it was later passed in the Parliament of India and it was implemented, then it was decided that all the Gurukul education given through Sanskrit medium is illegal.  Then, where has it been that where education is given in the local language, it will also be illegal and where education is given through English medium it will be legal.  Macaulay destroyed the Gurukul of India by implementing this law in India and it was destroyed by the British for almost 100 years and the Gurukulas of India were destroyed, sometimes Acharyas and some people protested, then their hands and feet  , The channels were cut off.

Indian ancient gurukuls used to be knowledge based and not degree based, the British stuck us upside down, trapped India in knowledge, degree.  Now if we go to any exam then this is what we have a degree.  The degree had no importance at first, what was the degree of sage Charaka, what was the Sankhya philosophy, what was his degree, so much research was done in astronomy that in the 14th century itself, Hindus told that Pluto is not a planet, now the world  People have started to believe that Pluto is not a planet, how far the distance of the Sun is from the Earth. People speak today and only in the 9th century did Indians know how far the Sun is from the Earth.  So these were the people who told such big things, who were sage sages, none of them had any degree, just knowledge.  Therefore knowledge is high, there is no degree.  But due to the education policy currently going on in India, everybody is running after the degree and the same rote knowledge is taught to us.  Friends, do you think what is the meaning of such education, after all, which does not empower us, which does not give us practical knowledge, which only teaches printing in the book, so there is a lot of need to change this education policy because only then the people of India will be self-reliant and  People will have an understanding of what knowledge truly is.  However, just a few days ago, the new national education policy has been announced by the Modi government. It is hoped that Modi ji will bring something good that will take Indians from their roots to modernity.

Comments

  1. Wahh..yarr.. Itna kuch sikhne ko mila aaj..thaxx ..itna knowledge spread karne.k.liye.or hat's off aapko.itna sab kuch knowledge ko acquire karke..likhna ..hr kisi k bss ki bat nahi..too keep doing.and..I am waiting for your next blog..😉😉

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    1. Thank you so much..or jldi hi nya blog publish krugi..😊

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