Ghunght or parda pratha ka itihas

क्या आप जानते है कि ओरतो की घूंघट या पर्दा प्रथा क्या है इसकी शुरुआत क्यों और कैसे हुई? केसे ओरतो का पर्दा करना उनकी जीवनशैली का एक हिस्सा बन गई और तो और यह महत्वपूर्ण प्रथा भी बन गई? वैसे, मैने सुना है अपना चेहरा तो वो छुपाते है जिन्होंने कोई गलत काम किया हो, जो अपराधी हो, तो फिर ये पर्दा क्यों?

घूंघट का इतिहास जानने से पहले, ये जानना जरूरी है की सभी रीति रिवाज, परम्पराओ के होने का एक कारण होता है। रीति रिवाज, परम्परा, प्रथा हर समाज के, हर इंसान की जरूरत को पूरा करने के लिए बनाए जाते थे और है। हमने समय-समय पर, अपनी जरूरत के आधार पर इन चीजों को बनाया है, ना कि इन चीजों ने हमे, ये याद रखना बहुत जरूरी है इन चीजों को अपनाने से पहले। केवल आंखे बंद करके हर चीज को स्वीकार कर लेना सही नहीं।

भारत प्राचीन स्वर्ण शिक्षा प्रणाली और उसका पतन

Ghunght or parda pratha ka itihas/ घूंघट या पर्दा प्रथा का इतिहास


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घूंघट या पर्दा प्रथा


तो शुरू करते है आज का ज्ञान...सबसे पहले पर्दा शब्द का अर्थ और ये कहा से आया है ये जानते है। पर्दा एक इस्लामी शब्द है जो अरबी भाषा में फारसी भाषा से आया। इसका अर्थ होता है "ढकना" या "अलग करना"। पर्दा प्रथा का एक पहलू है बुर्क़ा का चलन। बुर्का एक तरह का घूँघट है जो मुस्लिम समुदाय की महिलाएँ और लड़कियाँ कुछ खास जगहों पर खुद को पुरुषों की निगाह से अलग/दूर रखने के लिये इस्तेमाल करती हैं। भारत में हिन्दुओं में पर्दा प्रथा इस्लाम की देन है। इस्लाम के प्रभाव से तथा भारत में इस्लामी आक्रमण के समय उन लोगो की बुरी नज़र से बचाव के लिये हिन्दू स्त्रियाँ भी पर्दा करने लगीं। अब आप सोच रहे होंगे कि एक घूंघट करने से क्या हो जाएगा, बात घूंघट की नहीं, बात है उन मुस्लिम विदेशी लुटेरों की, जो जंगली जानवरो की तरह भारत में आए और भारत का शिकार करते चले गए। आप खुद सोचिए कि अगर आज आपके घर के बाहर कुछ ऐसे लोग हो तो आप अपनी मां, बेहन, बेटी को घर से बाहर जाने देंगे, जाहिर सी बात है नहीं, कोई क्यु अपने आप को, या अपने परिवार को नुकसान पहुंचना चाहेगा, तो यही चीज उस समय हुई, केवल घूंघट का नियम ही नहीं बना बल्कि स्त्रियों के गुरुकुल जाने और घर से बाहर निकलने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। उस समय के लोगो को जो ठीक लगा उन्होंने वो किया क्युकी शोषण का शिकार सबसे पहले हर जगह स्त्रियां या बच्चे ही होते है। इस प्रथा ने मुग़ल शासकों के दौरान अपनी जड़े काफी मज़बूत की। वैसे इस प्रथा की शुरुआत भारत में 12वीँ सदी में मानी जाती है। इस प्रथा का विस्तार राजस्थान, उतर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि में हुआ क्युकी पूरे भारत के इसी हिस्से में सबसे अधिक आक्रमणकारी आए और इसी हिस्से पर सबसे अधिक समय तक राज किया। इस प्रथा का ज्यादातर विस्तार राजस्थान के राजपुत जाति में था और आज भी इन क्षेत्रों में इस प्रथा को देखा जा सकता है। 20वीँ सदी के उतरार्द्ध में इस प्रथा के विरोध के फलस्वरुप इसमें कुछ कमी आई है। दोस्तो अब जरा आप सोचिए कि क्या यह घूंघट सही है ? यह प्रथा स्‍त्री की मूल चेतना को अवरुद्ध करती है, यह प्रथा उसे गुलामों जैसा अहसास कराती है और तो और जो स्‍त्रियां इस प्रथा से बंध जाती है, वे कई बार इतना संकोच करने लगती हैं कि बीमारी में भी अपनी सही से जांच कराने में असफल रहती हैं। तो ऐसी प्रथा को समाज मे रखने का क्या फायदा।

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Ghunght or parda pratha ka itihas/ घूंघट या पर्दा प्रथा का इतिहास


घूंघट या पर्दा प्रथा
                      

हमारे सनातन धर्म ग्रंथो में इस प्रथा का कहीं भी कोई उल्लेख नहीं मिलता। लेकिन आज भी स्त्रियों के घूंघट करना हमारी संस्कृति सभ्यता का प्रतीक माना जाता है, और यदि कोई ओरत आगे बढ़कर ऐसा ना करे तो उस ओरत को ही ये समाज बुरा मानता है। ये लाइन तो सुनी होगी ना आपने की मास्क लगाकर थक गए वो लोग, जो कहते थे कि एक स्त्री को घूंघट में रहना चाहिए। बहुत आसान हो गया है एक ओरत को इस हद तक मजबूर करना की वो अपना अस्तित्व ही खो दे और ऐसा करने वाले ज्यादातर होते भी उसके अपने ही है, खेर वो उसे अपना समझते नहीं वो बात अलग है। वैसे हमारे सनातन धर्म में एक स्त्री को बहुत आदर-सम्मान से देखा जाता है, और उसे पुरुष से उपर माना जाता है यानी एक स्त्री में एक पुरुष से एक गुण अधिक होता है । भगवान का शुक्र है कि मेरा जन्म ऐसे धर्म में हुआ और उससे भी ऊपर ऐसे परिवार में हुआ जहां एक लड़की को सही में एक लड़की समझा जाता है। मुगलकाल से ही भारत में स्त्रियों की स्थिति खराब होनी शुरू हो गई थी। सनातन धर्म के मूल स्रोत वेद है इनमें बताया गया है कि मनुष्य का धर्म क्या है, अधर्म क्या है, उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, रहन- सहन, खान- पान हर चीज का वर्णन हमें मिलता है लेकिन कहीं भी स्त्रियों के घूंघट या पर्दा करने की प्रथा नहीं लिखी गई। ऐसा क्यों ? कभी सोचते नहीं आप किसी को घूंघट में देखते है तब या ऐसा करने का कहने से पहले। अरे हा में तो भूल गई कि आप तो सोए हुए है और अगर जाग भी रहे है तो आपको क्या फर्क पड़ता है, बस हमने कह दिया ना ऐसा होगा तो ऐसा ही करना पड़ेगा, जो चला आ रहा है वो चलेगा, ये हमारी सभ्यता है, और हा ये कैसे भूल सकती हूं में घूंघट तो बड़े- बुजुर्गो के प्रति सम्मान का भी प्रतीक है। सही कहा ना मैने एकदम, वो घूंघट जिसका कोई वर्णन नहीं है हमारे ग्रंथों में, जो आज से लगभग 1000 साल पहले मुस्लिम आक्रांताओं से अपनी बहू- बेटियों को बचाने के लिए एक तत्काल उपाय के रूप में, उस समय की जरूरत के हिसाब से अपनाया गया, उसे आज कितनी बड़ी- बड़ी चीजों से जोड़ा जाता है। अब कुछ लोग ये सोच रहे होंगे कि लड़कियां तो आज भी किसी जगह सुरक्षित नहीं है, तो इसलिए घूंघट या पर्दा रखना सही है, तो आपको यह भी पता होना चाहिए कि आज ना 2 साल की बच्ची सुरक्षित है ना ही 70 साल की बुढ़िया, ना बुर्के वाली सुरक्षित है ना ही सलवार कमीज़ वाली या जीन्स पहनने वाली। आज के समय और पहले के समय में बहुत ज्यादा अन्तर है। जब विदेशी मुस्लिम आक्रांता भारत को लूटने, यहां राज करने आए तो उन्होंने ना सिर्फ छल- कपट से यहां के राजाओं को हराया बल्कि हारे गए राजा की पत्नी और उस राज्य की सभी सुन्दर स्त्रियों और बच्चो को दास बना दिया जाता था, उनका बहुत शोषण और अत्याचार होता था। लेकिन उस समय के भारत के लोग जो सनातन धर्मी थे वे अपने सनातन धर्म से जुड़े होने के कारण, यहां के समाज में इस तरह के अपराध नहीं के बराबर थे, और तो और मृत्यु दंड किसी को देना एक बहुत ही बड़ी बात होती थी, ज्यादातर अपराध होने पर उस अपराधी को देश निकाला दे दिया जाता था या उसकी नाक काट दी जाती थी, यहां के राजाओं- महाराजाओं, रानियो का धर्म में विश्वास, मातृभूमि प्रेम, स्वाभिमान, उनका आत्मसम्मान, उनकी हिम्मत ही उनके लिए सबसे बड़ी पूंजी थी। तो आप अब अंदाजा लगा सकते है कि पहले के समय में और आज के समय के हमारे समाज में या हमारे भारत में क्या अन्तर है। आज धर्म हमारा हिन्दू है, और धार्मिक पुस्तकें पढ़ने के नाम पर हम एकता कपूर के बनाए हुए महाभारत, रामायण, राधा कृष्ण ये सब फालतू के नाटक और बॉलीवुड की खराब फिल्में देखते है जिनमे हमारे ही धर्म का, देवी- देवताओं का मजाक बनाया जाता है ज्यादातर। लेकिन हमें कहा दिखता है ये सब, हम तो मस्त नींद में सोए हुए है। 

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दोस्तो कोई भी चीज बिना किसी कारण(reason) के नहीं होती, हा ये हो सकता है कि पहले पता ना लगे वो कारण लेकिन आने वाले भविष्य में हमें वो कारण साफ-साफ दिखने लगेगा, अगर चाहो तो, बस ये बहुत जरूरी है कि समय के हाथ से निकलने से पहले हमें वो कारण मिले और उस कारण को हम जड़ से ख़तम करे तभी समस्याओं का हल हो सकता है। प्राचीनकाल से आज का पूरा समाज बदल चुका है या ये कहूं तो ज्यादा ठीक होगा शायद, की बदल दिया गया है इसलिए इस पर ये घूंघट का कोई असर नहीं होगा, इसलिए उस समय की परिस्थिति में लिया गया निर्णय आज की परिस्थिति में सही नहीं हो सकता। परिस्थिति ही बदलनी है तो लड़ो इन सब चीजों से ऐसे लोगो से जो एक नारी की इज्जत करना नहीं जानते, जो बिना कुछ जाने, सोचे- समझे उस पर अपना कोई निर्णय थोप देते है ये कहकर कि ये हमारे संस्कृति है bla bla..। किसी समस्या को जड़ से ख़तम करने पर जो शांति मिलती है वहीं होती है असली शांति, शांति न्याय का पर्याय हो तभी अच्छी लगती है, केवल एक घूंघट लगाकर आज की परिस्थिति से समझौता कर लेना ये शांति बिल्कुल नहीं है, और यही बात हर चीज में लागू होती है केवल घूंघट की बात नहीं है। और हा अगर आज की पीढ़ी भी इन चीजों को अपनाती है तो वो और भी बड़ी बेवकूफ है क्युकी आपको तो सब मालूम है फिर भी आप ये सब मानोगे तब तो भाई तरक्की हो गई अपनी और इस देश की। और मुझे लगता है गुलाम बनाने वाले से ज्यादा, गुलामी सहने वाला अधिक अपराधी होता है। खेर ये अपनी- अपनी सोच है। और रही बात बड़े- बुजुर्गो के प्रति सम्मान की, आदर की तो भई चेहरा छुपाने में कोनसा सम्मान होता है, इससे तो कुछ और ही प्रतीत होता दिखता है, ओरत का चेहरा छुपा रहे हो या अपनी नियत को छुपा रहे हो ? सम्मान की ही बात है तो वो आंखो में और बोली में होना चाहिए।

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Ghunght or parda pratha ka itihas/ घूंघट या पर्दा प्रथा का इतिहास


अब कुछ उदाहरण देखते है हमारे ग्रंथों से जो यह बताते है कि हमारे सनातन धर्म में इस प्रकार की कोई प्रथा नहीं थी। प्राचीन ऋग्वेद काल में लोगों को विवाह के समय कन्या की ओर देखने को कहा है- इसके लिए ऋग्वेद में मंत्र भी है जिसका सार है कि "यह कन्या मंगलमय है, एकत्र हो और इसे देखो, इसे आशीष देकर ही तुम लोग अपने घर जा सकते हो।" वहीं 'आश्वलायनगृह्यसूत्र' के अनुसार दुल्हन को अपने घर ले आते समय दूल्हे को चाहिए कि वह प्रत्येक निवेश स्थान (रुकने के स्थान) पर दर्शकों को दिखाए और उसे बड़ों का आशीर्वाद प्राप्‍त हो तथा छोटों का स्‍नेह। इससे स्पष्ट है कि उन दिनों वधुओं द्वारा पर्दा धारण नहीं किया जाता था, बल्कि वे सभी के समक्ष खुले सिर से ही आती थीं। पर्दा प्रथा का उल्लेख इतिहास में सबसे पहले मुगलों के भारत में आक्रमण के समय से होता हुआ दिखाई देता है। इस संबंध में कुछ विद्वानों के मतानुसार 'रामायण' और 'महाभारत' कालीन स्त्रियां किसी भी स्थान पर पर्दा अथवा घूंघट का प्रयोग नहीं करती थीं। अजन्ता और सांची की कलाकृतियों में भी स्त्रियों को बिना घूंघट दिखाया गया है। मनु और याज्ञवल्क्य ने स्त्रियों की जीवन शैली के सम्बन्ध में कई नियम बनाए हुए हैं, परन्तु कहीं भी यह नहीं कहा है कि स्त्रियों को पर्दे में रहना चाहिए। संस्कृत नाटकों में भी पर्दे का उल्लेख नहीं है। यहां तक कि 10वीं शताब्दी के प्रारम्भ काल के समय तक भी भारतीय राज परिवारों की स्त्रियां बिना पर्दे के सभा में तथा घर से बाहर भ्रमण करती थीं, यह वर्णन स्‍वयं एक अरब यात्री अबू जैद ने अपने लेखन के जरिए किया है। स्पष्ट है कि भारत में प्राचीन समय में कोई पर्दाप्रथा जैसी बिमार रूढ़ी प्रचलन में नहीं थी।

Ghunght or parda pratha ka itihas/ घूंघट या पर्दा प्रथा का इतिहास

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अब इन सभी तथ्यों को देखकर निर्णय यह निकलता है कि यहां के लोगों ने प्राचीनकाल की विकट परिस्थितियों के कारण ओरतो, लड़कियों के घूंघट या पर्दा करने को जरूरी समझा और इसे, उस समय जीवनशैली का हिस्सा बनाया लेकिन आज परिस्थितियां बदल चुकी है आज ना ही लोग धर्म से जुड़े है इसलिए ना ही लोग प्राचीन भारत के लोगो की तरह धर्म का ज्ञान रखते है और ना ही सही और गलत में फ़र्क करना जानते है। आज की परिस्थिति में एक स्त्री चाहे पर्दा करे या ना करे वह किसी भी जगह सुरक्षित नहीं है, रही बात बड़ों के सम्मान की तो वो में पहले भी बता चुकी हूं। वैसे 20वी सदी के उतरार्द्ध में पर्दा प्रथा को कुप्रथा माना जाने लगा, इसे एक रूढ़िवादी प्रथा का दर्जा दिया गया और हमें शुरू से विद्यालयों में यही सब शिक्षा दी जाती है कि पर्दा प्रथा एक कुप्रथा है जबकि मुस्लिमो में आज भी बुर्का उनकी प्रथा मानी जाती है और इसे अपनाना हर मुस्लिम लड़की का कर्तव्य होता है, अजीब बात हैं ना ये तो की हमारी गलती तो है एक रूढ़िवादी प्रथा, एक कुप्रथा और उनकी गलती है उनके लिए उनकी सभ्यता- संस्कृति और मुस्लिम होने का प्रतीक। खेर हमें क्या फ़र्क पड़ता है हम तो आराम से सो रहे है, शायद पैदा हुए तबसे ही सोरहे है, खाओ- पियो एश करो, खूब पैसा कमाओ, हमें क्या लेना- देना इन बातो से। लेकिन अच्छा है कि हम हिन्दु सनातनी भाइयो में अपनी गलती को स्वीकार करने की ओर उसे सुधारने की ताकत है इसलिए यहां 20वी सदी के उतरार्द्ध में कुछ लोगों ने इसका विरोध किया, तब जाकर यह बदलाव सम्भव हुआ, चलो ये तो अच्छा हुआ। लेकिन ये सिर्फ हिन्दुओं में ही क्यों हुआ मेरे तो ये समझ नहीं आया, आपके समझ आए तो मुझे भी बताना..। वैसे बिन कारण और तत्वार्थ के जाने निष्कर्ष पर पहुंच जाना और निर्णय करना बेवकूफी है, चाहे कोई भी विषय हो या किसी के लिए हो।

Comments

  1. Nice keep writing loving your blogs. Har pratha ke peeche kuch reasons rhe hai or har pratha almost prathayen striyon ke liye hi hoti h unki suraksha ke liye pr jb rudiwadi purush samaj us pratha ko jhel nhi pata tb us pratha ko ku pratha ka nam de diya jata hai jese ki dahej pratha.. Purane samay me dahej pratha koi ku pratha nhi thi bulki ek pita ke liye apne purush bete or kanya beti me koi bhed na hone ka pratik thi cuz ek pita ki sampati me bete or beti ka samman adhikar hota h jb bete ko pita dwara puri jaydad milti h tb samaj kuch nhi bolta usi prakar beti ka bhi bete ke samman adhikar hota h isliye dahej diya jata tha.. Jha bete beti ko samanta di jaye wo bhla kesi ku pratha ku pratha to dahej ke liye beti ke sasuraal walon ki dahej ki maang krna hai pr jb aaj ke is samaj ko yah samanta khatakne lgi to ise bhi ku pratha hi bta diya gya or fir yhi samajh kehta h ladke ladki me koi bhed nhi h or ladkiyon ke adhikaron ke liye lad rha h sochne wali baat h jo adhikar cheen rhe h we hi adhikaron ke liye lad rhe hai�� by the way orat ka chera chipa rhe ho ya apni niyat... Correct line��

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    1. Rupe pese to chhodo vo chahiye bhi nhi dahej m..pyar, samman, apnapn or soch achhi mil jaye hr ghr m vhi kafi h..jo ek ladki ko bhi ladki smjhe..katputli nhi.
      Bdw thaxx..

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  2. Very nice keep going .your thinking process is amazing keep writing.

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  3. बहुत खूबसूरत वर्णन किया है आपने वैदिक शिक्षा के अनुसार ये किसी प्रकार की प्रथा नहीं थी मुस्लिम आक्रमण कर्मियों के आने के बाद महिलाओं पर इतनी पाबंदियां थोप दी गयी लेकिन उनसे पहले हमारे सत्य सनातन धर्म में महिलाएं पुरुषों से भी ज्यादा शिक्षित एवं समृद्ध थी|

    बहुत अच्छी सोच है आपकी keep it up

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  4. BHANU PRATAP SONI19 December 2021 at 03:01

    बहुत खूबसूरत वर्णन किया है आपने वैदिक शिक्षा के अनुसार ये किसी प्रकार की प्रथा नहीं थी मुस्लिम आक्रमण कर्मियों के आने के बाद महिलाओं पर इतनी पाबंदियां थोप दी गयी लेकिन उनसे पहले हमारे सत्य सनातन धर्म में महिलाएं पुरुषों से भी ज्यादा शिक्षित एवं समृद्ध थी|

    बहुत अच्छी सोच है आपकी keep it up

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