Sanatan dharm me swastik pratik ka kya matlab he

What does swastika symbol mean in sanatan dharma

Sanatan dharm me swastik pratik ka kya matlab he/What does swastika symbol mean in sanatan dharma
स्वस्तिक प्रतीक
क्या आप जानते हैं दोस्तों की स्वस्तिक चि
का क्या मतलब होता है आखिर यह प्रतीत ऐसे आकार में ही क्यों बना है इसे गोल, चकोर या और किसी भी आकार में क्यों नहीं बनाया गया और इसका सनातन धर्म में, आपकी भाषा में कहूं तो हिंदुओं में इसकी इतनी मान्यता क्यों है। और यह चिन्ह किस बात का सूचक है यह सब ऐसे सवाल है जिनका जवाब आप में से शायद ही कोई जानता हो। यहां मैं आपको इस स्वस्तिक चिन्ह का महत्व समझाने की पूरी कोशिश करूंगी।

दोस्तों आप यह जानते ही होंगे कि इन दिनों स्वस्तिक, हिटलर के नाजीवादी विचारधारा से जुड़ चुका है इसके चलते बहुत से हिंदुओं ने इस प्रतीक के साथ अपना संबंध बनाना बंद कर दिया है। अब यहां पर हमें यह समझना चाहिए कि जब कोई मूर्ख, अपनी मूर्खता से किसी शुभ चिन्ह की उल्टी व्याख्या करता है तो वह उस चिन्ह को अशुभ नहीं बनाता बल्कि वह बस अपनी मूर्खता को सिद्ध करता है। इसलिए हमें इस प्रतीक से प्रेम करने में कोई लज्जा नहीं आनी चाहिए। इस ब्लाग में, मैं आपको इस चिन्ह या प्रतिक कि एक सही व्याख्या करूंगी। ताकि आप इस प्रतीक की सुंदरता और महत्व को समझ सके।

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स्वस्तिक संस्कृत के शब्द स्वस्थ से आता है जिसका अर्थ हम सभी जानते हैं आरोग्यता, सेहतमंद, निरोग्यता आदि। इस प्रकार स्वस्तिक का अर्थ है स्वस्थचित्त यानी स्वस्थ मतलब सेहतमंद और चित्त मतलब मन या दिल। पूर्ण रूप से स्वस्तिक का अर्थ समझे तो सेहतमंद मन या शांत मन। वास्तव में स्वस्थ का गहरा अर्थ कल्याण होता है क्योंकि जब शरीर और मन स्वस्थ रहेगा तभी मनुष्य कल्याण को प्राप्त होगा इसलिए यह प्रतीक वास्तव में कल्याण का शुभ सूचक है।

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स्वस्तिक सूर्य का प्रतीक है जिसके केंद्र में ब्रम्हा हा
इस प्रतीक को समझने से पहले हमें दो महत्वपूर्ण चीजों को समझना चाहिए।पहला स्वस्तिक का चिन्ह वास्तव में सूर्य को दर्शाता है वैसे तो स्वस्तिक को एक स्थिर रूप छवि के रूप में दिखाया जाता है परन्तु वास्तव में इसे दक्षिणावर्त अर्थात क्लॉक वाइज(clock wise) दिशा में घूमते हुए चित्रित करना चाहिए। यदि आप इसे दक्षिणावर्त दिशा में घूमता हुआ दर्शाते हैं तो आप देखेंगे कि यह वास्तव में एक चक्र का रूप ले लेगा, यह चक्र सूर्य को दर्शाता है। 
दूसरा सनातन धर्म में सूर्य के कई अर्थ है प्रकृति वादी स्तर पर सोचा जाए तो सूर्य समृद्धि का चिन्ह है क्योंकि सूर्य ही पृथ्वी पर ऊर्जा का मूल स्त्रोत है परंतु आध्यात्मिक स्तर पर सूर्य को आंतरिक प्रकाश और ज्ञान का चिन्ह माना जाता है। तो आइए अब स्वस्तिक चिन्ह को समझते है।
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स्वस्तिक के विभिन्न भाग
स्वस्तिक के इस पूरे चिन्ह को विभिन्न भागों में विभाजित किया जा सकता है, जैसा कि मैंने आपको बताया है कि आप इसको एक चक्र के रूप में देखे और एक चक्र का सबसे महत्वपूर्ण भाग उसका केंद्र होता है जो इस चक्र में ब्रह्मा का प्रतीक है, ब्रह्मा हमारे अस्तित्व का स्त्रोत है, सब कुछ ब्रह्मा से उत्पन्न हुआ है इसलिए ब्रह्मा संपूर्ण अस्तित्व का केंद्र है। 

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मन के चार भाग
केन्द्र में स्थित ब्रह्मा का अनुभव करने के लिए हमें मन की आवश्यकता होती है और हमारी परम्परा में मन के 4 भाग होते है -:
1. मनस  2. बुद्धि  3. चित्त  4. अहंकार।
स्वस्तिक में केंद्र से निकलने वाली यह चार रेखाएं मानव मन के इन चार पहलुओं को दर्शाती है आइए इन पहलुओं को समझते हैं-:
1. मनस= यह हमारे मन का सोच-विचार करने वाला भाग है जिसके माध्यम से हम निर्णय लेते हैं।
2. बुद्धि= यह हमारा निर्धारक संकाय है जो हमें वह क्षमता प्रदान करता है जिसके माध्यम से हम जो भी अनुभव कर रहे हैं, उसे एक सही विचार में परिवर्तित कर पाते हैं और हमारे मन में उसके प्रति एक धारणा बनाते हैं।
3. चित्त= यह हमारा स्मृति कोष है जिसे हमने अपने अनुभवों के माध्यम से अपने मन में जमा लिया है यहां हमें यह ध्यान रखना है की चित्त केवल डाटा स्टोरेज तक ही सीमित नहीं है, संस्कार और हमारी प्रवृतियां भी चित्त से ही उत्पन्न होती है।
4. अहंकार= यह हमारे मन का वह भाग है जो हमारे भीतर मैं (स्वयं) का भाव उत्पन्न करता है।
स्वस्तिक की यह चार रेखाएं हमारे मन के इन चार भागों को दर्शाती है।

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चार साधनाएं
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि केवल एक अनुशासित और शांत मन ही स्वस्थ मन हो सकता है इसलिए हमें एक अनुशासित मन को विकसित करना चाहिए और हमारी परम्परा में एक अनुशासित मन को साधना के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। स्वस्तिक कि इन चार रेखाओं के आगे की जो चार रेखाएं हैं, यह वह चार साधनाए हैं जिनके द्वारा हम एक अनुशासित, शांत मन को विकसित कर सकते हैं यह चार साधनाएं है- 1.ज्ञान योग 2. भक्ति योग 3. कर्म योग 4. राजयोग।

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साधना करने का मार्ग
अब यह ध्यान रखिए कि केवल साधना का निर्णय लेना ही पर्याप्त नहीं है। हमें यह साधना दृढ़ विश्वास से करनी होती है इस दृढ़ विश्वास से साधना करने के लिए हमें 1.समर्पण  2. धैर्य  3. विश्वास  4. विवेक की आवश्यकता होती है और इन चारों को इसके आगे वाली चार छोटी रेखाएं दर्शाती है। जैसा कि आप इस फोटो में देख सकते हैं।


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दक्षिणार्ती स्वस्तिक में बाहर से अंदर की ओर आने की अवस्था
तो अब यदि हम इस पूरे चिन्हों को घुमाते हैं तो हम देख सकते हैं कि इसके केंद्र में ब्रह्मा है जिसको प्राप्त करने के लिए हम बाहर से आरम्भ करते हैं, जब हम समर्पण, धैर्य, विश्वास और विवेक के साथ, जब हम ज्ञान, भक्ति, कर्म और राजयोग करते हैं तो हमारा मन शुद्ध, शान्त और अनुशासित होता है और हम ब्रह्मा तक पहुंच जाते हैं। 
स्वस्तिक की पूरी संरचना जैसी मैंने अभी आपको बताइ, वह हमें बाहरी क्रियाओं के माध्यम से, हमारे भीतर की दिव्यता को प्राप्त करने का मार्गदर्शन देती है। 
अब यह तो स्वस्तिक की पूरी आकृति हो गई अंत में हमें स्वस्तिक की जो चार बिंदिया होती है इन्हें भी समझना है। 


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चार बिंदु यानी चार परिणाम या मुक्तिया
जैसा कि हम देख सकते हैं कि यह 4 बिंदु स्वस्तिक की पूरी संरचना से बिल्कुल अलग है। यह चार बिंदु हमें बताते हैं कि अगर हम स्वस्तिक में बताएं मार्ग के अनुसार चलते हैं तो इसके पश्चात हमारा क्या परिणाम होगा। यह चार बिंदु दिव्यत्व के चार परिणाम को दर्शाते हैं अर्थात यह चार बिंदु हमें बताते हैं कि स्वस्तिक में बताए अनुसार मार्ग पर चलने के पश्चात हमारा क्या परिणाम होगा। यह चार बिंदु चार मुक्तिया हैं जो इस प्रकार है-: 
1. सालोक्य= इसमें जिस भगवान को हम पूजते हैं उसी के लोक को प्राप्त होते हैं।
2. सामेप्य= इसमें हम पूजित भगवान के सदा निकट रहते हैं।
3. सारूप्य= इसमें हम पूजित भगवान का ही रूप धारण कर लेते हैं।
4. सायुज्य= इसमें हम पूजित भगवान का ही शरीर धारण कर लेते हैं।

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व्यक्तिगत रूप से में एक ही परिणाम पर विश्वास करती हूं जिसे यहां पर विभिन्न दृष्टिकोण के माध्यम से समझाया जा रहा है। यहां मैंने इन सभी बिंदुओं या मुक्तियो को केवल स्वस्तिक चिन्ह की सही व्याख्या करने के लिए पूरा समझाया है वास्तव में, मैं केवल एक ही मुक्ति को मानती हूं। स्वस्तिक के इस प्रतीक में प्रस्तुत आदर्शों के अनुसार यदि आप अपना जीवन जीते हैं तो वह जीवन सबसे कल्याणकारी जीवन होता है इसलिए यह चिन्ह भी स्वस्तिक कहा जाता है जैसा कि मैंने आपको पहले बताया स्वस्तिक मतलब स्वस्थ चित्त अर्थात सेहतमंद, शांत मन। मन शांत और अनुशासित होगा तब ही मनुष्य कल्याण को प्राप्त होगा। 

अब जब आप इस प्रतिक के अर्थ को समझते हैं तो जब भी आप यह चिन्ह देखेंगे तो यह तुरंत आपको स्मरण करा देगा कि कैसे हमें शांत और अनुशासित जीवन जीना चाहिए। इसी कारण इस चिन्ह को शुभ माना जाता है। अब दोस्तों यह बात कितनी गर्व करने लायक है ना कि कैसे एक छोटा सा चिन्ह हमें इतना गहरा अर्थ बताता है जो हमें एक सही, शांत और एक अनुशासित जीवन जीने की प्रेरणा देता है। दोस्तो यही है हमारा सनातन धर्म, अगर हम इसे गहराई से समझे तो ऐसे बहुत से राज है जो हमारे जीवन के सभी सवालों के जवाब दे सकते है और हमारे जीवन को एक नई दिशा भी दे सकते है। परन्तु यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम स्वयं को सनातन धर्म का या आपकी भाषा में काहू तो स्वयं को हिन्दू कहते हुए भी हम इन सभी बातों से परिचित नहीं है क्योंकि हम ना सही देखना चाहते है, ना सुनना चाहते है हम तो बस बोलना चाहते है वो भी तब जब हमारे पास किसी चीज की पूरी जानकारी ही ना हो। और आप तो जानते ही है कि आधा-अधूरा ज्ञान कितना खतरनाक होता है।

Comments

  1. ek aadbudh topic k..sath ..itna Sara knowledge ki bat ko batane k liye bahut Sara thank you..orr muje nahi pta tha ki sach me is swastik ke aadar itna deep meaning chupa he..bss sabko ye pta hota he..ki ye subh hota he..but sach me kisi ko iske piche ka real answer ka naho pta hota..too aaj aapne muje btaya ..Syd future me mujse koi pucha to me bta sako..mere liye ye proud ki..bat hogi..ESE he topic par blog likhte rahiye or. Aapke agle blog ka intezar rahenga.😉😉

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    1. Bahut bahut shukriya aaoka.. bhutsi esi chije h jo hmare aas pas h pr hme unka knowledge hi nhi chahe vo kisi bhi field ki ho..or m koshish krugi vhi sb smjkr likhne ki..you guys keep supporting me..❤️😊

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  2. Woww aaj mujhe bhi first tym pta chla ki swastik me kitna kuch chupa h or ye janke bht acha lga keep it up 😊👍

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