Secular या धर्मनिरपेक्ष या पंथनिरपेक्ष क्या है ?

नमस्कार दोस्तो, केसे है आप। टाइटल देख कर समझ ही गए होगे की में किस पर लिखूंगी, उससे पहले कह दू की कुछ लोग कहते है कि में हिन्दी में क्यों लिखती हूं जबकि इंग्लिश लिट्रेचर तो मेरा सब्जेक्ट है, वो इसलिए क्युकी हिन्दी मेरी पसन्द है और इंग्लिश तो बस जरूरत है आज के समय की। हिंदी को चुना लिखने के लिए क्युकी मुझे लगता है कि जो चीज हम हिंदी में कह सकते है, समझा सकते है वो बात इंग्लिश में नहीं है। इंग्लिश आज की जरूरत है क्युकी भारत में इंग्लिश को इतनी मान्यता प्राप्त है इसलिए। जरूरत और पसन्द को कभी एक नहीं समझना चाहिए, वैसे मुझे मारवाड़ी भाषा भी आती है पर शुरू से मेरे साथ हिन्दी बोलने वाले लोग ज्यादा है इसलिए हिंदी को चुना। और मैने इंग्लिश में लिख भी लिया तो यहां सिर्फ मुझे तो पढ़ना है नही, हर आयु के लोगो को समझ भी तो आना चाहिए।

दोस्तो, आज का टॉपिक है सेक्युलर या धर्मनिरपेक्ष या पंथनिरपेक्ष(secular) जानते तो होंगे ही आप की ये शब्द हमारे भारत के सविधान की प्रस्तावना में लिखा है, वह प्रस्तावना जिसे कभी बदला नहीं जा सकता। अब बात ये है कि ये शब्द सविधान में कहा से आया, कुछ लोग कहते है कि हमारा सविधान तो डॉ भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता वाली टीम ने बनाया है अर्थात हमारा सविधान बाबा साहेब अम्बेडकर ने लिखा है और हमे शुरू से यही पढ़ाया जा रहा है, यही सुनते आ रहे है और ये सही भी है। भारत के सविधान को 26 नवम्बर 1949 को सविधान सभा के सदस्यों द्वारा स्वीकृत किया गया था। लेकिन क्या आपको पता है उस समय सविधान में धर्मेनिरपेक्षता या पंथनिरपेक्षता जैसे शब्दों को नहीं लिखा गया था। इन शब्दों को 5 जून 1976 में जब भारत के सभी बड़े नेता, विपक्षी दल के नेता आपातकाल के समय जेल में बंद थे, उस समय भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत के सविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष या धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद इन शब्दों को जोड़ा। सविधान कि प्रस्तावना जिसे कभी बदला नहीं जा सकता, जो हमारे सविधान की आत्मा भी कहलाती है, उसमे आपातकाल में परिवर्तन करने की क्या जरूरत पड़ गई, ये बात सोचने वाली हेना, यानी इन शब्दों को सविधान की प्रस्तावना में लिखने के विषय में भारत की संसद में कोई बहस नहीं हुई, कोई सलाह मस्वरा नहीं लिया गया किसी दल के किसी नेता का, क्युकी उस समय भारत में आपातकाल लागू था, सभी बड़े नेता जेल में बन्द थे। हमारे देश में सविधान में कोई भी संशोधन करने से पूर्व संसद में उस पर बहस होती है, उसको सभी सदनों से स्वीकृति मिलने पर, पूर्ण बहुमत मिलने पर ही वह एक कानून बनता है या सविधान में कोई संशोधन होता है, लेकिन 1976 में आपातकाल की स्थिति में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, तो ऐसे में सविधान की प्रस्तावना में ये संशोधन करने की क्या जरूरत पड़ गई, यहां तक की हमारे देश की प्रस्तावना जो है वो ब्रिटेन से ली गई और ब्रिटेन की प्रस्तावना को कभी बदला नहीं जा सकता, तो भारात की प्रस्तावना में ये परिवर्तन केसे कर दिया, चलो कर भी दिया लेकिन बिना किसी बहस के उसे सभी सदनों से पास करा दिया गया, क्युकी बहस करने वाला तो कोई था ही नहीं उस समय, सभी बड़े नेता, विपक्षी दल के नेता जेल में थे। सोचने वाली बात नहीं क्या ये की ऐसा क्यों किया गया ?

Secular या धर्मनिरपेक्ष या पंथनिरपेक्ष क्या है ?/what is secular ?

कुछ लोगों का यह भी मानना है कि सविधान में पहले से ही धर्मनिरपेक्षता के भाव निहित थे, जैसे सविधान के मूल अधिकारों में- समानता का अधिकार है, बस प्रस्तावना में 1976 में लिख दिया गया कि हमारा देश पंथनिरपेक्ष या धर्मनिरपेक्ष है। आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कि जब 1949 में हमारा सविधान जब लागू होने वाला था उस समय संविधान सभा में लम्बी बहस के बावजूद भी मूल संविधान में धर्मनिरपेक्षता शब्द को जगह नहीं दी गई थी। क्या उन्हें भय था कि यह शब्द भविष्य में दुबारा भारत के विभाजन का कारण बन सकता है? बिलकुल सही बात है ये। आज हम देश के कुछ महान नेताओं के विचार पढ़ें तो सत्यता का अहसास हमें हो जाएगा। यदि आप मोहनदास करम चन्द्र गांधी (गांधी जी की जीवनी.. धनंजय कौर), सरदार वल्लभ भाई पटेल (संविधान सभा में दिए गए उनके भाषण) और बाबा साहब भीम राव अंबेडकर (डा अंबेडकर सम्पूर्ण वाग्मय, खण्ड 151) के इस्लाम पर व्यक्त किये गए विचार पढ़ लें तो आपको पता चल जाएगा कि 'धर्मनिरपेक्षता' शब्द को संविधान में वो क्यों रखने के पक्ष में नहीं थे और इस शब्द को वो कितना घातक समझते थे? अंग्रेजी शब्दकोश में 'सेकुलरिज्म' का अर्थ बताया गया है कि वो संवैधानिक सिद्धांत या नियम, जिसके आधार पर सरकार और उसके कर्मचारी सभी धर्मों के प्रति समान और सम्मान का भाव रखते हैं तथा धर्म और धर्मगुरुओ से दूरी बनाये रखते हैं, ये 'सेकुलरिज्म' कहलाता है। में ये नहीं कह रही हूं कि भारत में पंथनिरपेक्षता इससे पहले नहीं थी, ऐसा नहीं है, किन्तु संविधान की प्रस्तावना में 'सेक्युलर' शब्द के रूप में इसका उल्लेख नहीं था। में जानती हूं आप समझ नहीं पा रहे कि में क्या कहना चाहती हूं, कभी में सेक्युलर का हिंदी में अर्थ धर्मनिरपेक्ष बोलती हूं तो कभी पंथनिरपेक्ष। यही तो आज के समय की बड़ी बहस है,  एक बड़ी विडम्बना है और इसने इतना बड़ा और भयानक रूप ले लिया है कि कोई ना कुछ देखना चाहता है ना ही सुनना, समझना तो जैसे भूल ही गए है बस जो दिखाया जाता है, बताया जाता है वो सही मान लेते है।

में ये कह रही हूं दोस्तो, आप जानते ही होगे कि आज राजनेतिक पार्टियों का वोट बैंक कोन है, किस पार्टी का वोट बैंक कोन है, कांग्रेस को मुस्लिम वोट देगे, बीजेपी को हिन्दू, वहीं टीएसपी को बांग्लादेशी मुसलमान वोट देगे, तो ये सब क्या है, यानी पार्टी ये कहती जरूर है कि वो सेक्युलर है, सेक्युलर यानी कि हर पंथ के लोगो के साथ वो कोई भेद भाव नहीं करेगी, सभी को समान अधिकार मिलेगा लेकिन फिर भी कांग्रेस ने पिछले 72 सालो में क्या किया, मोदी सरकार तो अभी आई है, बीजेपी सरकार के आते ही 2015 में मंत्री राजनाथ सिंघ ने संसद में सेक्युलरिज्म का मुद्दा उठाया और कहा कि इस शब्द का हमारे देश में बहुत अधिक दुरुपयोग हुआ है, इसे रोकना चाहिए, दरअसल उन्होंने कांग्रेस की तरफ इशारा किया कि पिछली सरकार की तो पूरी राजनीति ही सेक्युलरिज्म पर आधारित थी और इस बात पर सोनिया गांधी और उनके मंत्री मंडल का भड़कना भी लाजमी था, सोनिया गांधी ने तो ये तक कह दिया कि इन्होंने एसी बात की है जिससे हमारा सविधान खतरे में है और उनके मंत्रियों ने उनकी इस बात को असवेधानिक और देश में असहिष्णुता फैलाने वाली बात करार किया। अब जरा एक बात बताइए दोस्तो, हमारे पूर्व प्रधानमंत्री "आदरणीय" मनमोहन सिंह जी ने खुले तौर पर ये कहा था कि देश की संपत्ति और संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। आश्चर्य की बात है कि देश के बुद्धिजीवियों ने उस समय उनके इस विवादित बयान पर कोई पुरस्कार या सम्मान वापसी या असहिष्णुता बढाने का हो हल्ला नहीं किया, तब ये बात इनके लिए सवेधानिक थी, ये होती है दोगलेपन वाली और जनता की धार्मिक भावनाओं के साथ खेलने वाली राजनीति, जो काग्रेस शुरू से अपनाती आ रही है। 72 सालो में कांग्रेस की सरकार ने भारतीयों के दिमाग में ऐसा कीड़ा छोड़ दिया कि अब तो स्थिति ये है कि हिंदू धर्म से नफरत करने वाले, हिंदू होकर भी हिंदू धर्म की बुराई करने वाले और हिन्दू धर्म को कमजोर करने वाले, सबसे बड़े सिक्यूलर नेता या बुद्धिजीवी हैं। यही वजह है की आज देश में एक समान नागरिक संहिता लागू करने और धर्मनिरपेक्षता की जगह पंथनिेपेक्षता अपनाने की बात हो रही है।

Secular या धर्मनिरपेक्ष या पंथनिरपेक्ष क्या है ?/what is secular ?

अब आप सोच रहे होगे ये धर्मनिरपेक्षता और पंथनिरपक्षता में आखिर फर्क क्या है।
पहले अंग्रेजी शब्द रिलिजन(religion) की व्याख्या करुगी, अंग्रेजी शब्द 'रिलीजन' का अर्थ मत, पंथ या संप्रदाय होता है, धर्म नहीं होता। तो आखिर धर्म क्या है, ये जानते है - दोस्तो, धर्म का सम्बन्ध उपासना पद्धति से नहीं, बल्कि आचरण से सम्बन्ध है, मतलब समझ रहे है आप, यानी हमारे सनातन धर्म में धर्म का मतलब ये नहीं है कि हम किस भगवान की पूजा कर रहे है, अल्लाह की, गोड की या हमारे भगवान ब्रह्मा विष्णु महेश किसी की भी, चाहे पूजा किसी भी पद्धति से करे, ये धर्म नहीं है, बल्कि धर्म तो है हमारा कर्म। और ये आज की बात नहीं है जैसा कि में अपने पिछले ब्लॉग में भी बता चुकी हूं कि हमारा सनातन धर्म यानी वैदिक धर्म करोड़ों-अरबों वर्षों से चला आ रहा है इसी के अनुसार धर्म का मतलब कर्म से है ना कि केवल उपासना पद्धति से। भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन की प्रमुख संकल्पना है धर्म। 'धर्म' शब्द का पश्चिमी भाषाओं में यानी अंग्रेजी में इसका समतुल्य शब्द पाना बहुत कठिन है या शायद नामुमकिन है। साधारण शब्दों में कहूं तो धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है, 'धारण करने योग्य', अर्थात जिसे हर मानव को धारण करना चाहिये। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन और बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय या पंथ मात्र हैं। सम्प्रदाय या पंथ एक परम्परा विशेष को मानने वालों का समूह होता है। इसमें हिन्दू को इसलिए शामिल कर रही हूं क्युकी हिन्दू कोई धर्म नहीं है, में अपने पिछले ब्लॉग में भी बता चुकी हूं कि हिन्दू शब्द कहा से आया। दोस्तो हमारा हिन्दू धर्म नहीं है बल्कि हमारा सनातन धर्म है। क्यों हम खुद ही अपनी पहचान को गलत बता रहे है, क्यों हम अपनी पहचान को भूलते जा रहे हे ? शायद इसलिए की इससे क्या फरक पड़ता है, फरक पड़ता है, बहुत फरक पड़ता है, दोस्तो घर की अगर नीव मजबूत होगी ना तो भूकम्प आने पर घर हिलेगा तो जरूर लेकिन टूटेगा नहीं लेकिन अगर निव ही नहीं होगी तो घर तो एक दिन टूटना ही है, और एक बात और  सिर्फ सनातन नाम अपनाने का में नहीं कह रही, सिर्फ खुद को सनातनी कहने से कुछ नहीं होगा, सनातनी बनो, सिर्फ कहो मत, अब इतनी तो में उम्मीद कर ही सकती हूं आपसे की सनातन किसे कहते है, अगर ये भी नहीं पता तो कम से कम गूगल पर लिखो, सर्च करो, बाकी आपकी समझ है, समझदार तो आप है ही। खेर टॉपिक पर आते है, सनातन धर्म में धर्म हमे सही तरह से जीने का तरीका सीखाता है, ऐसा माना जाता है कि धर्म मानव को मानव बनाता है। हिन्दू धर्म में अनेक स्थलों पर धर्म को किसी ऐसे मानव के रूप में दर्शाया गया है जो न्याय और प्राकृतिक व्यवस्था की प्रतिमूर्ति है। इसी प्रकार, यम को 'धर्मराज' कहा जाता है क्योंकि वे मनुष्यों को उनके कर्मों के अनुसार निर्णय करके मनुष्यो को गति देते हैं अर्थात जैसी करनी वैसे भरनी ये हमे भली भांति इनके माध्यम से दर्शाया गया है। हमारे वेदों में उपनिषदों में भी यही बताया गया है, हमारी मनुस्मृति के अनुसार धर्म की व्याख्या इस प्रकार से की गई है -- 

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम्।।
 
अर्थातहिंदी में इसका मतलब है - (धृति (धैर्य), क्षमा (दूसरों के द्वारा किये गये अपराध को माफ कर देना, क्षमाशील होना), दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (अन्तरंग और बाह्य निष्कपटता), इन्द्रिय निग्रहः (इन्द्रियों को वश मे रखना), धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग), विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की प्यास या इच्छा), सत्य (मन, वचन, कर्म से सत्य का पालन) और अक्रोध (क्रोध न करना) ; ये दस मानव धर्म के लक्षण हैं।) समझ रहे है आप ये सभी चीजे, ऐसा आचरण करना धर्म है ना कि केवल पूजा पाठ करना, दिन में 5 बार नमाज पढ़ना धर्म है।

श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत्।।

अर्थात इस श्लोक का अनुवाद है कि धर्म का सर्वस्व यानी धर्म का अर्थ क्या है, यह सुनो और सुनकर उस पर चलो ! अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये। ये कितनी अच्छी बात लिखी है हमारे ग्रंथों में, जो शायद दुनिया में कोई और धर्म ग्रंथ में नहीं लिखी

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सम्राट अशोक द्वारा लिखवाया गया कान्धार का द्विभाषी शिलालेख (258 ईसापूर्व) ; इस लेख में संस्कृत में 'धर्म' और ग्रीक में उसके लिए 'Eusebeia' लिखा है, जिसका अर्थ यह है कि प्राचीन भारत में 'धर्म' शब्द का अर्थ आध्यात्मिक प्रौढ़ता, भक्ति, दया, मानव समुदाय के प्रति कर्तव्य आदि था।

कुल मिलाकर हमारे सनातन धर्म में, धर्म को, जीवन को धारण करने, समझने और जीवन को सही मार्ग पर ले जाने की विधि बतायी गया है। लेकिन फिर भी धर्म को परिभाषित करना उतना ही कठिन है जितना ईश्वर को। दुनिया के तमाम विचारकों ने जिन्होंने धर्म पर विचार किया है, अलग-अलग परिभाषाएं दी हैं। इस नजरिए से वैदिक ऋषियों का विचार सबसे ज्यादा उपयुक्त लगता है कि सृष्टि और स्वयं के हित और विकास में किए जाने वाले सभी कर्म धर्म हैं। यानी सभी की भलाई में किया गया कर्म ही धर्म है ना कि केवल पूजा पाठ करना, मन्दिरों- मस्जिदों के चक्कर लगाना या फिर दिन में 5-5 बार नमाज पढ़ना। में इन चीजों के विरोध में नहीं हूं कि करो ही मत लेकिन हर चीज की एक सीमा होती है, हमारे बड़े बुजुर्ग कह गए है की अति हर चीज की बुरी होती है। अगर आज लोगो को सही में धर्म क्या है इसका ज्ञान होता तो भारत आज भी विश्व गुरु होता लेकिन आज ये बड़े शर्म की बात है कि विश्व के 200 श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में भारत के केवल 3 विश्वविद्यालय शामिल है, जिनमें पहला विश्वविद्यालय है आइ टी आई बॉम्बे जो कि 172वे स्थान पर है, एक समय ऐसा भी था जब भारत के तक्षशिला, नालन्दा महाविहार, द्रोणाचार्य, कांगड़ा विश्वविधालय जैसे कई विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय थे जहां भारत के बाहर से भी लोग शिक्षा प्राप्त करने आते थे। खेर यही तो भारत देश का दुर्भाग्य है हमारा 72 सालो से या ऐसा कहूं कि जब से अरबों का या मुसलमानों का आक्रमण भारत पर हुआ, तब से हमारे सनातन धर्म का पतन होना शुरू हो गया था। और आज ये दशा है कि हमे इतनी गलत बाते दिखाई जा रही है, इतनी गलत चीजे पढ़ाई जा रही है कि अब हमे हमारी सही बात भी गलत लगती है या ये कहूं कि अब तो कोई ग्रंथो को पढ़ना तो दूर की बात है, अब तो आज कल के पढ़े लिखे गवार मन्द बुद्धि लोग खुदको सेक्युलर कहना फेशन समझते है, उनके लिए सेक्युलर का मतलब है अपने धर्म की बुराई करना और दूसरा कोई कुछ कहे तो उसकी हा में हा मिलाना क्युकी इन गवार लोगो ने कभी सनातन धर्म को जाना ही नहीं, तो सामने वाले को सही जवाब तो कहासे देगे, तो बस किसी ने कुछ कहा और इन्होंने मान भी लिया। हमारी गलती ये है कि हम सोए हुए है, हम कुछ बोलते नहीं, हम में हिम्मत ही नहीं है गलत को ग़लत और सही को सही कहने की या शायद ये कहना भी ठीक ही होगा की कुछ लोगो को ये ज्ञान ही नहीं है कि सही क्या है और गलत क्या है इसलिए वो सही होते हुए भी गलत बन जाते है। "नहीं" ये एक शब्द बहुत कुछ कर सकता है, बहुत कुछ बदल सकता है, बस कहने वाले को सही ज्ञान और सही तरीका होना चाहिए।

Secular या धर्मनिरपेक्ष या पंथनिरपेक्ष क्या है ?/what is secular ?

अब धर्म तो समझ आ गया होगा आपको की धर्म क्या है अब हम बात करते है पंथ की, पंथ यानी संप्रदाय, मतलब किसी एक या अधिक परलौकिक शक्ति में विश्वास और इसके साथ-साथ उसके साथ जुड़ें रीति, रिवाज, परम्परा, पूजा-पद्धति और दर्शन को मानने वाले लोगो का समूह है। अब आप सोच रहे होगे ये तो धर्म है, नहीं दोस्तो, ये ग़लत धारणाएं फैलाई गई है पश्चिमी लोगो के द्वारा। पश्चिमी-जगत यानी जीजुस क्राइस्ट(god) को मानने वालो का सम्बन्ध केवल सम्प्रदाय या "विश्वास" से है इसलिए वह भारतीय सनातन धर्म से अनभिज्ञ रहते हुए "धर्म" को भी "मज़हब" या "पंथ" बताते है जो नितांत ग़लत है। दोस्तो पंथ बदल सकता है क्युकी ये तो एक समूह विशेष के द्वारा मानी जाने वाली प्रथाओं परंपराओं का एक संप्रदाय मात्र है, और आप सभी जानते ही है कि प्रथाएं परंपराएं समय के साथ बदलती है इसलिए कोई पंथ को माने या ना माने या अपनी मर्जी से इसे बदले ये हो सकता है लेकिन हमारे सनातन धर्म को सम्प्रदाय या पंथ से जोड़ कर देखना वास्तव में हमारे धर्म की समझ को सीमित करना है, वास्तव में विशुद्ध धर्म तो केवल "सनातन धर्म" ही है बाकी सब उसकी शाखाएं मात्र हैं यानी "सम्प्रदाय" और "पंथ"। अब ये तो अभी हमने सिर्फ धर्म को और पंथ को समझा। अब हम समझते है धर्मनिरपेक्षता को, दोस्तो बहुत ही सीधी सी सरल सी भाषा में बताउगी। ये शब्द 2 शब्दों से मिलकर बना है धर्म + निरपेक्ष। धर्म का अर्थ तो मैने उपर आपको बता ही दिया कि हमारे सनातन धर्म में धर्म का सही मायने में क्या मतलब है, अब आता है निरपेक्ष- निरपेक्ष का मतलब होता है अनादर करना, अवहेलना या अवज्ञा करना। अब जरा सोचिए जो लोग खुदको सेक्युलर कहते है या धर्मनिरपेक्ष कहते है, वो जानते बूझते या शायद जाने अनजाने में ही क्या कह रहे है, समझ रहें है ना आप, सही में धर्म क्या है ये तो समझ आया ना आपको। सीधे तौर पर कहूं तो ये की क्या कोई व्यक्ति अपने ही धर्म के प्रति निरपेक्ष हो सकता है क्या ? यानी अपने ही धर्म को ना मानने वाला, उसका अनादर करने वाला, एक शब्द में कहूं तो नास्तिक। अगर आपका जवाब हा है तो ये कहुगी की जीते हुए भलेही नास्तिक रहे या खुदको सेक्युलर कहे लेकिन दुनिया से जायेगे तो चार कंधो पर ही राम नाम सत्य है ये कहकर और यही नहीं आपके सभी क्रिया कर्म पूरे विधि विधान से सम्पन्न किए जायेगे, तो फिर आप नास्तिक केसे हो गए ? छोड़ो क्या फरक पड़ता है हेना...।

अब सवाल ये है कि आखिर ये सेक्युलर शब्द को धर्मनिरपेक्षता से जोड़ कोन रहा है और क्यों ? जैसा कि मैने पहले बताया की अंग्रेजी में सेक्युलर का अर्थ पंथनिरपेक्ष होता है, ये शब्द भी पश्चिमी सभ्यता की देन है। पश्चिमी सभ्यता यानी ईसाई लोग क्राइस्ट को मानते है यानी आज से 2021 साल पहले जीसस क्राइस्ट( jesus christ) का जन्म हुआ था, उस दिन से ईसाई कैलेंडर की शुरुआत हुई, जो आज हम सभी के घरों में लगा रहता है। क्राइस्ट को पूजनीय मानने वाले लोग इसाई कहलाते है। यानी देखा जाए तो जीसस क्राइस्ट तो एक इंसान ही थे क्युकी उनसे पहले भी तो दुनिया थी ही, ऐसा तो है नहीं की उनके आने से ही इंसानों की उत्पति हुई और उन्होंने ही दुनिया को बनाया और इस बात के प्रमाण भी उपलब्ध है। हमारे भारत की प्राचीन सभ्य सिंधु घाटी सभ्यता ही 2500-3000 वर्ष पुरानी है, जहा उस समय में भी ईटो के बने पक्के मकान थे इसका प्रमाण मिला है, ये तो कम से कम वर्ष बताए है मैने, हमारे पुराणों में तो ये दुनिया अरबों वर्षों से चली आ रही है। इस प्रकार से ईसाइयत जो है वो कोई धर्म नहीं है बल्कि एक पंथ है क्युकी सिर्फ उसको मानने वाले लोग ईसाई कहलाते है और इसाई धर्म ग्रंथ यानी बाइबिल में भी केवल ईसाई लोगो को क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए, ऐसे उपदेश दिए गए है। कहने का मतलब ये है कि ईसाई धर्म किसी समूह विशेष की विशिष्ट परम्परा, रीति रिवाज, रहन सहन, खान पान, सभ्यता, संस्कृति, पूजा पद्धति आदि को मानने वाले लोगो का समूह है। ईसाई धर्म केवल ईसाई धर्म को मानने वाले लोगो का प्रतिनिधित्व करता है ना कि पूरी दुनिया का। अब आप सोच रहे होगे कि में फिर इसे धर्म क्यों कह रही हूं वो बस इसलिए की आपको समझ आ जाए क्युकी समान्यत लोग सभी संप्रदायों या पंथ को धर्म ही कहते है जबकि ये ग़लत है। और ये लोग पंथ को धर्म क्यों कहते है ये इसलिए क्युकी इन्होंने यानी ईसाई, मुस्लिम, यहूदी, पारसी ये जितने भी पंथ है इन लोगो ने कभी धर्म को जाना ही नहीं, इनके लिए तो बस इनका पंथ ही इनका अपना धर्म है। लेकिन ऐसा नहीं है दोस्तो ये सारी कन्फ्यूजन धर्म और पंथ को लेकर जो फैलाई गई है ये सब इन लोगो की ही देन है, क्युकी ये लोग धर्म की गहराई को समझते ही नहीं, ये तो बस पंथ या संप्रदाय को ही अपना धर्म मानते है जबकि सनातन धर्म में, धर्म का बहूत विस्तृत अर्थ है, हमारा सनातन धर्म केवल समूह विशेष के लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं करता बल्कि यह तो शुरुआत से ही पूरे विश्व का प्रतिनिधित्व करता है। हमारे धर्म ग्रंथो में, भागवद गीता में किसी समूह विशेष के लिए कोई बात नहीं लिखी गई बल्कि इसमें श्री कृष्ण के द्वारा पूरी मानवता के कल्याण की बाते कही गई है, इसलिए भागवद गीता को भारत का राष्ट्रीय ग्रंथ भी माना गया है। ये हमारे लिए कितने गर्व की बात है दोस्तो की हमारा जन्म भारत में हुआ वो भी सनातन धर्म में, पर अफसोस ये पश्चिमी सभ्यता के लोग हमारे धर्म को कभी नहीं जान पाएंगे क्युकी इनके यहां धर्म का कोई तुक ही नहीं है, इनका ईसाई धर्म, धर्म नहीं बस एक पंथ या संप्रदाय मात्र है, और केवल ईसाई धर्म ही नहीं, विश्व में जितने भी धर्म माने जाते है वे सभी पंथ ही है क्युकी और कोई धर्म पूरे विश्व का नेतृत्व नहीं करता, पूरे विश्व के कल्याण की बात नहीं करता और ना ही उन धर्मों की जड़े गहरी है, इसलिए सभी लोग अपने पंथ को ही धर्म मानते है। हमारे सनातन धर्म में, प्राचीनकाल में राजाओं महाराजाओं का धर्म होता था उनका कर्म। अमेरिका, ब्रिटेन में तो सत्त्ताए या देश जो था वो चर्च से चलया जाता था, वहा के राजा महाराजा चर्च के अनुसार अपने सारे निर्णय लेते थे, अब चर्च यानी उनकी जो धार्मिक पुस्तक बाइबिल है उनको मानने वाले, चर्च के अनुसार ही देश चलाया जाता था लेकिन भारत में प्राचीनकाल से ही राजा महाराजा किसी विशेष वर्ग के लोगों की नहीं सोचते थे बल्कि सनातन धर्म में जैसा कहा गया है कि हमारा सही आचरण करना, सत्य की राह पर कर्म करना और मानवता का कल्याण ही हमारा धर्म है इसे मानकर राजा देश का नेतृत्व करते थे। हमारे देश भारत में कोई जाति प्रथा नहीं थी यहां तो मनुष्यो के कर्मो के हिसाब से वर्ण व्यवस्था थी। जैसे अपनी इन्द्रियों को पूर्ण रूप से अपने वश में करना, सबको ज्ञान देना, शिक्षा का प्रचार प्रसार करना ब्राह्मण का कार्य था, सभी की रक्षा करना देश की रक्षा करना क्षत्रिय का कार्य, व्यवसाय करना वेश्यो का कार्य था और हस्तकला के कार्य करना या बाकी तीनों वर्णों की सेवा करना शूद्र का कार्य था, हमारे यहां जातियों का कोई नामो निशान नहीं था, ये जातियां तो मुगलकाल से बनने लगी थी। कभी इस पर अलग से ब्लॉग लिखूंगी की जातियों की आखिर उत्पति केसे हो गई हमारे समाज में, यहा लिखने लगी तो काफी लंबा चला जाएगा। इस प्रकार से यहां राजा का काम प्रजा के प्रति अपने दायित्वों को पूरा करना, सभी को समान भाव से देखना, कोई भेदभाव ना करना, प्रजा की रक्षा करना, प्रजा का भरण पोषण करना और प्रजा के हर तनाव को ख़तम करना होता था और राजा यही अपना कर्तव्य मानता था और यही उनके लिए धर्म था। प्राचीनकाल से ही भारत वसुधेव कुटुंबकम् को मानता है यानी पूरी पृथ्वी हमारा परिवार है। हमारे ग्रंथों में भी पूरे विश्व के कल्याण की बाते लिखी है जैसे - 

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत।
ऊँ शांतिः शांतिः शांति:
 
अर्थात - "सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।"

प्राचीनकाल से ही भारत के राजा ऐसी भावना के साथ देश का नेतृत्व करते थे। सीधे तौर पर कहूं तो प्राचीन भारत में सही कर्म ही धर्म था। धर्म केवल पूजा पाठ करना, मंदिर में जाना, प्रशाद चढ़ाना, मस्जिद में जाना, 5 बार नमाज पढ़ना, चर्च में जाना सिर्फ ये धर्म नहीं है, हमारे यहां सनातन धर्म की माने तो मंदिर तो मात्र हमारे मन को, हमारे चित को एकाग्र करने का एक माध्यम मात्र है जिसे प्राचीनकाल में हमारे ऋषि मुनियों ने चुना, की वो एक मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसके सामने हाथ जोड़कर आंखे बन्द करके बैठते और अपनी अंतरात्मा को देखते यानी मन को एकाग्र कर तपस्या करते थे। सीधे तौर पर कहूं तो अपने अंदर ही है भगवान है बस देखने की जरूरत है, मन्दिर में जाकर हाथ जोड़कर आंखे बन्द क्यों करते है, इसका सीधा मतलब यही है कि अपनी इन्द्रियों को वश में कर, सभी और से अपना ध्यान हटा कर अपने अंदर देखो, अपने 4 पुरुषार्थ को जानो, अपनी आत्मा को जानो और फिर कर्म करो। अपने अंदर के भगवान को नहीं भी देख सको तो कम से कम हमारे घर में ही भगवान है हमारे माता पिता उनको देखो, उनसे बात करने से हमे हमारे सारे सवालों के जवाब आसानी से मिल जायेगे।


हमारे यहां धर्मनिरपेक्षता की तो कोई बात ही नहीं थी क्युकी धर्म तो एक ही है पूरे विश्व में, बाकी सब तो मजहब या पंथ या संप्रदाय मात्र है। धर्म और मजहब एक नहीं हो सकते। धर्म एक ही है जो है सनातन धर्म लेकिन 1976 में जब हमारे देश में आपातकाल लागू था, देश के सभी बड़े नेता जेल में बन्द थे, उस समय देश के संविधान में संशोधन कर, बिना किसी बहस के, हमारे सविधान की प्रस्तावना में सेक्युलर शब्द को डाला गया, जिसका हिंदी में अर्थ कुछ लोग धर्मनिरपेक्ष बताते है। तो धर्म, धर्म तो एक ही है हमारा सनातन धर्म। और एक बात बताए दोस्तो क्या कोई अपने धर्म के प्रति निरपेक्ष हो सकता है, निरपेक्ष मतलब समझाया ना अभी उपर, नहीं पता तो दोबारा उपर पढ़े नहीं तो गुगुल पर सर्च करे, गूगल बाबा से बड़ा तो और कोई गुरु नहीं होता ना आजकल सभी के लिए, वैसे भी में यहां एक भी बात गलत नहीं लिख रही। खेर ये सब एक साजिश थी जो 1976 में इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार ने चली, हम लोग खुद ही कंफ्यूज होकर रह गए कि आखिर ये सेक्युलर का मतलब क्या होता है। ये सब एक साजिश थी हम हिन्दुओं को अपने ही धर्म से दूर रखने की, हिन्दुओं की खाल में अंग्रेज और मुसलमनो को पैदा करने की ओर अफसोस बहुत हद तक वो इसमें कामयाब भी हो गए, आज किसी को ही देखो वो खुद को सेक्युलर कहता हुआ घूमता है, उनके लिए सेक्युलर होना मानो एक फैशन बन गया है, एक ट्रेंड चला हुआ है, खुदको सेक्युलर कहना अपनी छवि को और ऊपर उठाने जैसा मानने लगे है लोग, कभी जरा उनसे पूछना कि सेक्युलर का, धर्म का और पंथ या मजहब या संप्रदाय इन शब्दों का सही अर्थ पता है, गेरेंटी के साथ कह सकती हूं कि उन्हें कुछ पता नहीं होगा क्युकी हमारे तो संविधान में ही सेक्युलर शब्द लिखा गया है, और बड़े बड़े नेता लोग सेक्युलर का मतलब हिंदी में धर्मनिरपेक्ष मानते है जो कि बिलकुल गलत है, मेरे खयाल से ऐसे लोगो ने कभी हमारी धार्मिक पुस्तकें पढ़ी ही नहीं है इसलिए ये लोग धर्म और पंथ या मजहब में कोई फर्क नहीं समझ पा रहे। दोस्तो हमारे सनातन धर्म में 4 वेद, 6 शास्त्र, 18 पुराण, 60 नीतियां और 108 उपनिषद् है लेकिन कुछ कर्महिन हिन्दू मत्था टेकने मजारो पर ही जाएंगे क्युकी आजकल ये फैशन बन गया है, कुछ बड़े बड़े सेलिब्रिटी मस्जिदों में जाते है, लोगो के पास खुदका दिमाग तो होता नहीं आजकल तो बस इन सेलेब्रिटी के जैसा बनने की कोशिश करते है उनसे प्रभावित होते है, वहीं उनके आदर्श बन जाते है, लोगो को ये नहीं पता कि कैसे ये लोग हमें धोका दे रहे है, केसे हमारी भावनाओं के साथ खेला जा रहा है, इन लोगो को सिर्फ रुपए से मतलब है उसी के लिए ये सब करते है और कोई मतलब नहीं। पर जो भी है ये ग़लत है आज की युवा पीढ़ी अपने ही धर्म से, धर्मनिरपेक्ष होने के नाम पर दूर होती जा रही है, अब कहावत तो सुनी होगी आपने की "बोये पेड़ बबूल का तो आम कहा से होय" तो आप सोच सकते है अब की आगे क्या होने वाला है या क्या हो सकता है और ये चीज हिन्दुओं में ही ज्यादा है वरना किसी मुस्लिम के या ईसाई के मुंह से सुना है कि ये धर्मनिरपेक्ष है, मुस्लिम धर्म में तो राष्ट्र का कोई महत्व ही नहीं है, इनके यहां तो अगर अरब देश में कोई मुस्लिम बीमार है तो दिल्ली में बैठे मुस्लिम का दायित्व उस अरब में बैठे मुसलमान के लिए होगा क्युकी वो उसके मजहब है, हम तो कुछ है ही नहीं इनके लिए, हम तो बस काफिर है, इसलिए इनमें देश का कोई महत्व ही नहीं है, इनके लिए देश से पहले इनका मजहब आता है, और इनका मजहब दुनिया के 57 देशों में है जहां शरियत की बाते मानी जाती है जो पूर्ण रूप से इस्लामिक देश है, अब बाकी आप सोच सकते है।

Secular या धर्मनिरपेक्ष या पंथनिरपेक्ष क्या है ?/what is secular ?

सच कहूं तो दोस्तो कांग्रेस की सरकार ने हमे इतने वर्षों तक धोका दिया है, पहले तो देश के टुकड़े कर दिए मुस्लिम लीग बनाकर। विभाजन के समय 98% मुस्लिम पाकिस्तान गए और 2% मुसलमान भारत में रहे, जिससे कश्मीर मुस्लिम बहुसंख्या वाला राज्य बना, और 1947 में विभाजन के समय से ही कश्मीर पर केंद्र के अधिकारो को समाप्त कर दिया गया, कश्मीर का अलग सविधान, अलग कानून बनाया गया ऐसा क्यों, क्युकी वो भारत का मुस्लिम बहुसंख्यक राज्य था, समझ नहीं आता एसी भी क्या जरूरत पड़ी इनकी बाते मानने की। हमारा भारत, पाकिस्तान थोड़ी है जो अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करता है या करता था, फिर क्या जरूरत पड़ी कश्मीर में 370 धारा लगाकर कश्मीर को विशेषाधिकर देने की, जिसके तहत कश्मीर में कोई अन्य राज्य का व्यक्ति कभी बस नहीं सकता, कश्मीर की लड़की से कोई दूसरे राज्य का व्यक्ति विवाह नहीं कर सकता, कश्मीर की नागरिकता अलग से होती थी, जबकि कश्मीर का कोई भी व्यक्ति भारत में कहीं भी रह सकता था किसी से भी शादी कर सकता था, तो ये सब क्या है। धारा 370 तो अब बीजेपी सरकार के आने के बाद हटी है उससे पहले तो यही सब था। इससे पहले आपको पता ही होगा कि कश्मीर केसे आतंकवादियों का एक अड्डा बना हुआ था इन मुसलमानों के कारण, अब वहा के हालत कुछ सुधर रहे है वरना पहले तो कश्मीर में क्या होता था क्या नहीं किसी को खबर तक नहीं होती थी। कांग्रेस सरकार के कुछ लोग हिन्दुओं की खाल में अंग्रेज और मुसलमान थे जिन्होंने हमेशा हमारा प्रयोग किया है, इस तरह से हमें धोका दिया कि हमें ही पता नहीं चला कि हमारे साथ क्या क्या गलत हुआ, हम तो बस कतपुतलिया बन गए उनकी। भारत के विभाजन में कांग्रेस का हाथ था, फिर भारत में लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति को आजाद भारत में स्वीकृति देना ये दूसरा सबसे खराब काम, उसके बाद भारत के ही लोगो से खासकर हिन्दुओं से उनका असली इतिहास छुपाया गया, जो आज तक छुपाया जा रहा है, आज भी स्कूल, कालेजों के पाठयक्रम में बच्चो को सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त, इतिहास की गलत पुस्तके पढ़ाई जा रही है फिर चाहे वों किसी भी बोर्ड की पुस्तकें हो, सभी में भारत का इतिहास जो पढ़ना चाहिए वो नहीं पढ़ाया जा रहा। सभी पुस्तकों में बस यही है कि अकबर एक महान व्यक्ति था उसने जोधा से एक हिन्दू लड़की से शादी की धर्म परिवर्तन नहीं किया, औरंगजेब तो अपना गुजारा टोपी सिलकर करता था, शाहजहां अपनी पत्नी से इतना प्यार करता था कि उसने ताजमहल तक बना डाला और उसने लाल किला बनाया, दिल्ली की जामा मस्जिद बनाई और बाबर उसने तो अपनी ही मस्जिद बना डाली, अलाउद्दीन खिलजी ने यहां की अर्थव्यवस्था को संभाला। यही सब बाते लिखी है इतिहास की पुस्तकों में, ये नहीं लिखा कि अकबर था तो लुटेरा ही जो भारत को लूटने आया था, औरंगजेब ने भारत में कितने ही मन्दिरों को तोड़ा लोगो का धर्मांतरण किया, उसने तो भारत के तक्षशिला विश्वविद्यालय तक में आग लगा दी, ऐसा सुना है मैने की उस समय वहा इतनी किताबे, इतने धर्म ग्रंथ थे जिसके कारण वहां की आग 2-3 महीने तक बूझी नहीं, और भी कितने ही विश्वविद्यालयों, मंदिरों का नामो निशान मिटा दिया गया ओरंगजेब के द्वारा और बाबर ने राम मन्दिर तोड़ के मस्जिद बनाई थी, और मुमताज शाहजहां की पत्नी नहीं थी वो तो शाहजहां की सेना में एक जुबेदार था उसकी पत्नी थी लेकिन शाहजहां ने उसके पति की हत्या कर मुमताज को अपनी पत्नी बना लिया, अब ये कहा का प्यार हुआ। पृथ्विराज चौहान, विक्रमादित्य, शिवाजीराव, महाराणा प्रताप, राणा सांगा, मौर्य सम्राट, रानी लक्ष्मीबाई, पद्मावती, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी श्रद्धानंद, सीखो के गुरु गोविंद सीघ जी, गुरु तेजपाल, भगत सिंघ, चन्द्र शेखर आजाद जैसी महान आत्माओं के शौर्य की कहानी हमसे छुपाई गई, इनका नामो निशान तक नहीं है हमारे इतिहास की पुस्तकों में, कहीं है तो भी गलत लिखा गया है इनके बारे में, हमें तो बस शीशे का एक फलक ही तोड़ मरोड़ कर दिखाया गया है दूसरा फलक हमसे छुपाया गया है। ये सब कांग्रेस की सरकार ने किया। आजादी के बाद हमारे शिक्षा मंत्री थे मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, जिसने कांग्रेस के छुपे हुए एजेंडे के तहत भारत के इतिहास को ऐसे तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया कि आज भारत के लोग खासकर के हिन्दू खुद कहने लगे है कि अग्रेज और मुगल, अरब के मुसलमान लुटेरे भारत का विकास करने आए थे, उनकी ही वजह से भारत का विकास हुआ, भारत को गति मिली, सब गलत है, आप खुद सोचिए कि कोई चोर आपके घर में घुस आए तो वो आपका और आपके घर का क्या हाल करेगा, लेकिन हम क्यों सोचे ऐसा हमे तो सिर्फ रुपए पैसे से मतलब है देश जाए भाड़ में, सच कहूं तो हम खुद ही हमारे आत्मसम्मान की रक्षा नहीं कर सकते, हमारे भारत देश की भूमि के वो खून से सने 1000 साल हम भूल गए और कुछ वामपंथी हिन्दू, कुछ हिन्दुओं की खाल में छुपे मुसलमानों ने हमे भटका दिया है, सब झूठी  किताबें बच्चो को पढ़ाना कितनी गलत बात है। आप इसको इस तरह से समझें जैसे मान लीजिए कि आपके दादा एक महान व्यक्ति थे, वे बहुत वीर और क्रांतिकारी व्यक्ति थे, वे हमेशा सही का साथ देते थे और सबकी भलाई करते थे, ऐसा सुनकर ही आपको अपने खून पर गर्व होगा कि हा मेरे दादा ऐसे थे, में उनका खून हू, घर में आप अपने दादा की तस्वीर बड़ी लगाओगे, कोई आएगा घर में तो आप कहोगे कि ये थे मेरे महान दादा जी, जो बड़े क्रांतिकारी थे, अब यही में कह दू की आपके दादा तो बहुत ही घटिया किस्म के व्यक्ति थे, वे तो बहुत अत्याचारी थे, वे अपराधी थे, तब क्या आप अपने घर मे उनकी बड़ी तस्वीर लगा कर सभी को बता पाओगे गर्व से कि ये थे मेरे दादा, नहीं ना, स्वाभाविक सी बात है, मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा है, कोई भी हो चाहे आपकी बात नहीं है ये। ऐसा होने पर इन चीजों से हमारा आत्मविश्वास कम होता है, खुद की पहचान से ही घृणा होने लगती है, हम इन चीजों से फिर दूर भागते है क्युकी इससे हमारा आत्म सम्मान कम होता है क्युकी बात हमारे खून की हमारे इतिहास की है। तो बस यही सब तो चाहते थे कुछ लोग की हम खुद ही दूर भागे, उन्होंने हमें गलत चीजे पढ़ा कर, एकता कपूर के वो घटिया सीरियल और बकवास सी फिल्में दिखा कर हमसे हमारी पहचान ही छीन ली। आज महाराष्ट्र में 6ठी कक्षा के इतिहास की पुस्तक में ये लिखा है कि भगत सिंह, सुखदेव और अब्दुल हामिद देश के लिए शहीद हुए जबकि अब्दुल हामिद तो कोई इंसान ही नहीं है असलियत में इसकी जगह राजगुरु का नाम होना चाहिए, राजगुरु शहीद हुए थे भगत सिंह और सुखदेव के साथ लेकिन हमे गलत इतिहास पढ़ाया जा रहा है, बहुत ही बारीकी से मुसलमानों की छवि को साफ करने का काम किया जा रहा है, आप सोच सकते है जब छोटा बच्चा बचपन से ये सब पढ़ेगा तो वो हमारी बात पर यकीन थोड़ी करेगा। कांग्रेस की सरकार ने बहुत बड़ा खेल खेला हमारे साथ फिर 1976 में ये सेक्युलर या धर्मनिरपेक्ष या पंथनिरपेक्ष शब्द सविधान में जोड़ा गया, जिसने हम हिन्दुओं को ही बांट कर रख दिया। एक बात बताए दोस्तो क्या इससे पहले हमारे देश में कभी मुसलमानों पर अत्याचार होता था क्या कभी उनके अधिकारों को छीना जाता था, हम तो ऐसे देश में है जहां हिन्दुओं के सबरीमलय में महिलाओं के जाने की मना हो तो वहा भारत देश की सुप्रीम कोर्ट कहती है कि जेंडर जस्टिस(gender justice) होना चाहिए लेकिन वही मस्जिद में महिलाओं को जाने की मना हो तो वहा हमारे भारत देश की सुप्रीम कोर्ट मुसलमानों के डर से फैसला तक नहीं सुना पाती, अब आप ही बताइए ये कहा तक सही है, ऐसी अनगिनत बाते है जो में आपको बात सकती हूं जहां हिन्दुओं को नीचा दिखाया जाता है, सनातन धर्म का मजाक बनाया जाता है, पर्दा प्रथा या घूंघट प्रथा, सती प्रथा, जोहर ये सब हिन्दुओं से जुड़ी हेना, इनका सहारा लेकर कुछ लोग कहते है कि हिन्दू समाज तो रूढ़िवादी है, में मानती हूं ये सब चीजें गलत थी लेकिन ये सब क्यों शुरू की गई, ओरतो के घूंघट रखने की प्रथा क्यों शुरू की गई, इन सभी के पीछे उस समय एक कारण था लेकिन आज समय बदल गया है अब वो कारण भी नहीं है तो आज हम खुद भी खुलकर इसका विरोध करते है लेकिन इनका बूर्खा तो आज भी चालू है, हमारी घूंघट प्रथा जो एक समय तत्कालीन समाधान के रूप में अपनाई गई थी, वो आज के समय रूढ़िवादिता को दर्शाती है और हम स्वीकार भी करते है इस बात को लेकिन इनका बूर्खा फिर क्या है, बूर्खा क्यों रखना चाहिए कोई बताए मुझे पहले तो, ये रूढ़िवादिता नहीं है क्या ? ऐसे ऐसे सवाल होते है जिनको दबा दिया गया है क्युकी हमें तो हमारे पाठयक्रम में ही यही पढ़ाया गया है कि हिन्दू समाज की रूढ़िवादी प्रथाएं चली आ रही है, किसी भी पुस्तक में बुर्खे का नहीं लिखा गया, ये नहीं लिखा गया कि मस्जिद में ओरतो का जाना मना है, वन्दे मातरम बोलना इनके लिए अपने धर्म के खिलाफ जाने जैसा होता है, भारत माता की जय बोलने से इनका धर्म खतरे में पड़ जाता है और तो और ये ना ही भारत के सविधान को मानते है और ना ही किसी कानून को, इनके लिए तो एक अलग से शरियत कानून बनाया हुआ है उसी के अनुसार ये चलते है, इनकी पुस्तक धर्मिक शरियत सविधान से उपर है इनके लिए, मजहब ही सब कुछ है इनका, देश तो जैसे कुछ है ही नहीं। भारत में रहकर भारत के बहुसंख्यक लोगो के टैक्स के पैसे से तो इनको रोटी मिलती है, इनके मदरसे बनते है लेकिन फिर भी जिस थाली में खाना खाया उसी में छेद करेगे ये लोग। आप सोच रहे होंगे कि में मुसलमानों के खिलाफ हूं में हिंसा फेला रही हूं, नहीं ऐसा नहीं है, में तो बस सच लिख रही हूं, मेरी किसी से दुश्मनी थोड़ी है में एक भारतीय होने के नाते लिख रही हूं जो सच है वो, अब कोई आपके घर में घुस कर आपको लूट लेगा, आपके घर वालो पर अत्याचार करेगा तो क्या आप चुप बेठेगे, भारत देश हमारा घर है यहां का हर एक नागरिक हमारे परिवार का हिस्सा है और परेशानियां किस घर में नहीं होती लेकिन अगर परिवार का कोई सदस्य अपने ही परिवार वालो को मिटाना चाहे, उन्हें नुकसान पहुचाये, बाकी सदस्यों को अपना दुश्मन समझे, तो उसे पहले समझाया जाएगा लेकिन फिर भी ना समझे तो उसका घर से निकल जाना ही सबके लिए ठीक है। 


कुल मिलाकर बात इतनी है कि हमें गांधी जी के 3 बंदर बनकर नहीं रहना है। और गांधीवादी विचारधारा को तो में वैसे भी नहीं मानती की कोई आपको एक थप्पड़ मारे तो आप अपना दूसरा गाल भी आगे कर दो ये तकनीक हर बार काम नहीं आती, सब देखो अपनी आंखो से, सब समझो अपने आप से, फिर कुछ करो अपने दिमाग से। वैसे 2021 में नई शिक्षा नीति आएगी देखते है कुछ हाल सुधरता है या फिर से पढ़ाने की वहीं चीजे होगी और पढ़ाने का वहीं तरीका होगा।


   

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