Sanatan dharm me puja path ka mahatva/Importance of worship in Sanatan Dharma

नमस्कार दोस्तो, आज में बताना चाहूंगी कि हमारे सनातन धर्म में, हम जो भगवान की पूजा-पाठ करते हे, मंत्रो का उच्चारण या भगवत गीता के श्लोकों को कंठस्थ करते है, कुछ हनुमान चालीसा का पाठ करते हे, तो ऐसा क्यों किया जाता है। यहां मैं हनुमान चालीसा, भजन कीर्तन और कुछ मंत्रो के हिंदी अनुवाद करने की कोशिश करुंगी ताकि आपको सही से समझा सकू जो में कहना चाहती हू।

दोस्तो, एक बार मान लेते हे की मैं किसी 9-10 साल के बच्चे से कहूं की चाय बनाओ, जाहिर सी बात हे छोटा बच्चा हे तो चाय बनानी नहीं आती होगी तो उसे मैं चाय बनाने की पूरी रेसिपी लिख कर दूंगी शुरू से एंड तक और कहूं की ये पढ़ो और फिर बनाओ चाय। बच्चा भी उस रेसिपी को रट लेगा कहे अनुसार लेकिन जब चाय बनाने लगा तो उसे तो पता ही नही चला की चीनी कोन सी हे और नमक कोनसा है, चाय पत्ती कैसी दिखती हे और दूध, दही और छाछ कैसे होते हैं, उस बच्चे ने तो चाय के नाम पर पता नही क्या बना कर रख दिया।

अब दोस्तो आप सोच रहे होंगे की छोटे बच्चे को क्या पता होगा की चीनी कौनसी होती हे और नमक कोनसा, दोनो सफेद ही होते हे एक जैसे। आप कहेंगे की बच्चे को पहले शुरू से बताना होगा कि चीनी मीठी होती है और ये इस तरह की दिखती हे, ऐसी होती है और नमक कड़वा होता हे। इसी तरह हर चीज के बारे में उसे जानकारी देनी होगी, तभी वह चाय बनाने जैसे एक सरल से काम को कर पाएगा। इसी तरह जब हम कोई पाठ करते हे या जैसे हनुमान चालीसा ही करते हे या श्री राम स्तुति करते हे तो हमारा उद्देश्य केवल ये नहीं होना चाहिए की हमे बस वो चीज याद करनी हे या ये करने से हमारे कोई दुख दूर होंगे या ये करने का मतलब हे की हम भगवान को याद करते हे बल्कि सही मायनो में ये चीजे तो इसलिए बनाई गई हे ताकि उसमे जो बाते लिखी हे उसे हम समझ कर पढ़े और उसे अपने पूरे जीवन में अपनाने का निरंतर प्रयास करे। भगवान ये कभी नही चाहेंगे की हमारे मुंह पर तो हनुमान चालीसा या श्री राम जी का नाम हो और मन में समाए बैठा हो रावण। लेकिन आजकल ये चीज खत्म सी होती जा रही है, लोग केवल नाम के लिए भगवान का नाम लेते हे की बस 108 बार ये जप करना हे या 7 बार हनुमान चालीसा पढ़नी हे जिससे हमारे दुख दूर हो जायेगे। ऐसे करने से तो अच्छा हे फिर न ही करे। अब कुछ लोग ये भी कहेंगे की पाठ करने से मन को शांति मिलती हे, मन एकाग्रचित रहता हे, कुछ पल शांति के मिलते हे भगवान का नाम लेने से। ये बाते भी बिलकुल सही है मैं मानती हूं की शांति बहुत मिलती हे, एक अलग ही सुकून सा मिलता है, मन बिलकुल शांत और स्थिर हो जाता हे अगर मन से याद किया जाए तो। लेकिन फिर भी में यही कहूंगी की कोई भी पाठ, कोई भी संस्कृत श्लोक, कोई भी आरती या भजन-कीर्तन का अर्थ जाने, उसे समझे, ना की बस सब कर रहे हे ऐसे ही तो हम भी चलो कर लेते हैं।

या फिर किसी पंडित महाराज ने कहा हे की सुबह उठते ही नहाकर ये संस्कृत श्लोक का उच्चारण करना हे आरती के समय या हनुमान चालीसा करनी हे 3 बार जिससे आपके सारे रुके काम हो जायेगे, ऐसा सब सोचकर ना करे। इस अंधविश्वास में नहीं रहना चाहिए। विश्वाश और अंधविश्वास में बहुत फर्क होता है। विश्वाश है हमे की भगवान हमारे साथ है लेकिन हमारा जो कर्म हे वो तो हमे ही करना होगा, हम अपना कर्म करेगे तो भगवान रहेंगे हमारे साथ जैसे कुंती पुत्र अर्जुन के साथ भगवान श्री कृष्ण थे, तो ये हुआ विश्वास की फल की चिंता छोड़ निरंतर अपना कर्म करना। और वही अगर में कुछ ना करू और सोचू भगवान हे मेरे साथ सब हो जाएगा तो ये होगा अंधविश्वास। ये तो वही बात हुई कि आप यूपीएससी टॉप करना चाहते हो बिना पढ़े। आप खुद सोचिए, क्या ये मुमकिन है जवाब मिल ही जायेगा। आजकल लोग इस शॉर्टकट के चक्कर में सनातन धर्म से जुड़ी चीजों का असली महत्व तो भूलते ही जा रहे है।


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Sanatan dharm me puja path ka mahatva/Importance of worship in Sanatan Dharma


संपूर्ण हनुमान चालीसा का अर्थ कितने लोगो को पता होगा या श्री राम स्तुति जो बहुत प्रचलित हे उसका हिंदी अनुवाद कितनो को पता हैं, और भी बहुत से मंत्र है जो बस दिखावे के रूप में या गाने के हिसाब से गाए जाने लगे है, रही सही कसर ये टीवी सीरियल्स पूरी कर ही देते है। यहां में कुछ का हिंदी अनुवाद करूंगी। सब से पहले हनुमान चालीसा से ही शुरू करते है। जो इस प्रकार है-

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि |

बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ||

अर्थ – श्री गुरु के चरण कमल के धूल से अपने मन रुपी दर्पण को निर्मल करके प्रभु श्रीराम के गुणों का वर्णन करता हूँ जो चारों प्रकार के फल (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) देने वाला है।


बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार |

बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ||

अर्थ – हे पवन कुमार, मुझे बुद्धिहीन जानकार सुनिए और बल, बुद्धि, विद्या दीजिये और मेरे क्लेश और विकार हर लीजिये।


जय हनुमान ज्ञान गुन सागर |

जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ||

अर्थ – ज्ञान गुण के सागर हनुमान जी की जय। तीनों लोकों को अपनी कीर्ति से प्रकाशित करने वाले कपीश की जय।


राम दूत अतुलित बल धामा |

अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ||

अर्थ – हे अतुलित बल के धाम रामदूत हनुमान आप अंजनिपुत्र और पवनसुत के नाम से संसार में जाने जाते हैं।


महाबीर बिक्रम बजरंगी |

कुमति निवार सुमति के संगी ||

अर्थ – हे महावीर आप वज्र के समान अंगों वाले हैं और अपने भक्तों की कुमति दूर करके उन्हें सुमति प्रदान करते हैं।


कंचन बरन बिराज सुबेसा |

कानन कुण्डल कुँचित केसा ||

अर्थ – आपके स्वर्ण के सामान कांतिवान शरीर पर सुन्दर वस्त्र सुशोभित हो रही है। आपके कानो में कुण्डल और बाल घुंघराले हैं।


हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै |

काँधे मूँज जनेउ साजै ||

अर्थ – आपने अपने हाथों में वज्र के समान कठोर गदा और ध्वजा धारण किया है। कंधे पर मुंज और जनेऊ भी धारण किया हुआ है।


संकर सुवन केसरी नंदन |

तेज प्रताप महा जग वंदन ||

अर्थ – आप भगवान शंकर के अवतार और केसरीनन्दन हैं। आप परम तेजस्वी और जगत में वंदनीय हैं।


बिद्यावान गुनी अति चातुर |

राम काज करिबे को आतुर ||

अर्थ – आप विद्यावान, गुनी और अत्यंत चतुर हैं और प्रभु श्रीराम की सेवा में सदैव तत्पर रहते हैं।


प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया |

राम लखन सीता मन बसिया ||

अर्थ – आप प्रभु श्रीराम की कथा सुनने के लिए सदा लालायित रहते हैं। राम लक्ष्मण और सीता सदा आपके ह्रदय में विराजते हैं।


सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा |

बिकट रूप धरि लंक जरावा ||

अर्थ – आपने अति लघु रूप धारण करके सीता माता को दर्शन दिया और विकराल रूप धारण करके लंका को जलाया।


भीम रूप धरि असुर सँहारे |

रामचन्द्र के काज सँवारे ||

अर्थ – आपने विशाल रूप धारण करके असुरों का संहार किया और श्रीराम के कार्य को पूर्ण किया।


लाय सजीवन लखन जियाये |

श्री रघुबीर हरषि उर लाये ||

अर्थ – आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के प्राणो की रक्षा की। इस कार्य से प्रसन्न होकर प्रभु श्रीराम ने आपको ह्रदय से लगाया।


रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई |

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ||

अर्थ – भगवान श्रीराम ने आपकी बहुत प्रसंशा की और कहा कि हे हनुमान तुम मुझे भरत के समान ही अत्यंत प्रिय हो।


सहस बदन तुम्हरो जस गावैं |

अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ||

अर्थ – हजार मुख वाले शेषनाग तुम्हारे यश का गान करें ऐसा कहकर श्रीराम ने आपको गले लगाया।


सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा |

नारद सारद सहित अहीसा ||

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते |

कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ||

अर्थ – हे हनुमान जी आपके यशों का गान तो सनकादिक ऋषि, ब्रह्मा और अन्य मुनि गण, नारद, सरस्वती के साथ शेषनाग, यमराज , कुबेर और समस्त दिक्पाल भी करने में असमर्थ हैं तो फिर विद्वान कवियों का तो कहना ही क्या।


तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा |

राम मिलाय राज पद दीन्हा ||

अर्थ – आपने सुग्रीव पर उपकार किया और उन्हें राम से मिलाया और राजपद प्राप्त कराया।


तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना |

लंकेस्वर भए सब जग जाना ||

अर्थ – आपके सलाह को मानकर विभीषण लंकेश्वर हुए ये सारा संसार जानता है।


जुग सहस्र जोजन पर भानू |

लील्यो ताहि मधुर फल जानू ||

अर्थ - हे हनुमान जी आपने बाल्यावस्था में ही हजारों योजन दूर स्थित सूर्य को मीठा फल जानकर खा लिया था।


प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं |

जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ||

अर्थ – आपने भगवान राम की अंगूठी अपने मुख में रखकर विशाल समुद्र को लाँघ गए थे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं।


दुर्गम काज जगत के जेते |

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||

अर्थ – संसार में जितने भी दुर्गम कार्य हैं वे आपकी कृपा से सरल हो जाते हैं।


राम दुआरे तुम रखवारे |

होत न आज्ञा बिनु पैसारे ||

अर्थ – भगवान राम के द्वारपाल आप ही हैं आपकी आज्ञा के बिना उनके दरबार में प्रवेश नहीं मिलता।


सब सुख लहै तुम्हारी सरना |

तुम रच्छक काहू को डर ना ||

अर्थ – आपकी शरण में आए हुए को सब सुख मिल जाते हैं। आप जिसके रक्षक हैं उसे किसी का डर नहीं।


आपन तेज सम्हारो आपै |

तीनों लोक हाँक तें काँपै ||

अर्थ – हे महावीर, अपने तेज के बल को स्वयं आप ही संभाल सकते हैं। आपकी एक हुंकार से तीनो लोक कांपते हैं।


भूत पिसाच निकट नहिं आवै |

महाबीर जब नाम सुनावै ||

अर्थ – आपका नाम मात्र लेने से भूत पिशाच भाग जाते हैं और नजदीक नहीं आते।


नासै रोग हरे सब पीरा |

जपत निरन्तर हनुमत बीरा ||

अर्थ – हनुमान जी के नाम का निरंतर जप करने से सभी प्रकार के रोग और पीड़ा नष्ट हो जाते हैं।


संकट तें हनुमान छुड़ावै |

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ||

अर्थ – जो भी मन क्रम और वचन से हनुमान जी का ध्यान करता है वो संकटों से बच जाता है।


सब पर राम तपस्वी राजा |

तिन के काज सकल तुम साजा ||

अर्थ – जो राम स्वयं भगवान हैं उनके भी समस्त कार्यों का संपादन आपके ही द्वारा किया गया।


और मनोरथ जो कोई लावै |

सोई अमित जीवन फल पावै ||

अर्थ – हे हनुमान जी आप भक्तों के सब प्रकार के मनोरथ पूर्ण करते हैं।


चारों जुग परताप तुम्हारा |

है परसिद्ध जगत उजियारा ||

अर्थ – हे हनुमान जी, आपके नाम का प्रताप चारो युगों (सतयुग, त्रेता , द्वापर और कलियुग ) में है।


साधु सन्त के तुम रखवारे |

असुर निकन्दन राम दुलारे ||

अर्थ – आप साधु संतों के रखवाले, असुरों का संहार करने वाले और प्रभु श्रीराम के अत्यंत प्रिय हैं।


अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता |

अस बर दीन जानकी माता ||

अर्थ – आप आठों प्रकार के सिद्धि और नौ निधियों के प्रदाता हैं और ये वरदान आपको जानकी माता ने दिया है।


राम रसायन तुम्हरे पासा |

सदा रहो रघुपति के दासा ||

अर्थ – आप अनंत काल से प्रभु श्रीराम के भक्त हैं और राम नाम की औषधि सदैव आपके पास रहती है।


तुह्मरे भजन राम को पावै |

जनम जनम के दुख बिसरावै ||

अर्थ – आपकी भक्ति से जन्म जन्मांतर के दुखों से मुक्ति देने वाली प्रभु श्रीराम की कृपा प्राप्त होती है।


अन्त काल रघुबर पुर जाई |

जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ||

अर्थ – वो अंत समय में मृत्यु के बाद भगवान के लोक में जाता है और जन्म लेने पर हरि भक्त बनता है।


और देवता चित्त न धरई |

हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ||

अर्थ – किसी और देवता की पूजा न करते हुए भी सिर्फ आपकी कृपा से ही सभी प्रकार के फलों की प्राप्ति हो जाती है।


संकट कटै मिटै सब पीरा |

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ||

अर्थ – जो भी व्यक्ति हनुमान जी का ध्यान करता है उसके सब प्रकार के संकट और पीड़ा मिट जाते हैं।


जय जय जय हनुमान गोसाईं |

कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ||

अर्थ – हे हनुमान गोसाईं आपकी जय हो। आप मुझ पर गुरुदेव के समान कृपा करें।


जो सत बार पाठ कर कोई |

छूटहि बन्दि महा सुख होई ||

अर्थ – जो इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करता है उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और उसे महान सुख की प्राप्ति होती है।


जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा |

होय सिद्धि साखी गौरीसा ||

अर्थ – जो इस हनुमान चालीसा का पाठ करता है उसे निश्चित ही सिद्धि की प्राप्ति होती है, इसके साक्षी स्वयं भगवान शिव हैं।


तुलसीदास सदा हरि चेरा |

कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ||

अर्थ – हे हनुमान जी, तुलसीदास सदैव प्रभु श्रीराम का भक्त है ऐसा समझकर आप मेरे ह्रदय में निवास करें।


पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप |

राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ||

अर्थ – हे मंगल मूर्ति पवनसुत हनुमान जी, आप मेरे ह्रदय में राम लखन सीता सहित निवास कीजिये।



Sanatan dharm me puja path ka mahatva/Importance of worship in Sanatan Dharma



श्रीराम स्तुति में भगवान श्रीरामचन्द्रजी के बारे में उनके गुणों, स्वभाव, बन्धुओं की रक्षा करना, सभी पर अपनी समान दृष्टि भाव रखने की प्रवृति, सभी पर अपनी कृपा की छांव में रखने के प्रवृति, उनके शरीर के रूप-रंग, आकृति, स्वभाव, दैत्यों का संहार करने वाले, शरीर पर तरह-तरह के रत्नों से जड़ित आभूषणों को धारण किये और माता सीताजी गौरी मां की पूजा करके पूजा स्वरूप वरदान मिलने से खुश दिखाई देती हुई हैं। इसलिए श्रीराम स्तुति का स्तुतिगान करने से सभी तरह से भगवान रामजी के पूरे दर्शन की प्राप्ति होती है। श्री राम स्तुति हिंदी अनुवाद शायद बहुत से लोगो को नहीं पता होगा जो इस प्रकार है-

श्री राम स्तुति श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं।

नवकंज-लोचन, कंजमुख, कर-कंज पद कंजारुणं।।

अर्थ:-हे मेरे अथिर मन तु सभी पर अपनी कृपा करने वाले और सब पर समान दृष्टि रखने वाले श्रीरामचन्द्र जी की भक्ति भाव और उनका गुणगान कर, वे जगत के आने-जाने की योनि के भयंकर कष्ट के डर निवारण करने वाले हैं, श्रीरामचन्द्रजी के चक्षु नये बने हुए पंकज पुष्प की तरह कोमल हैं, मुख-हस्त और उनके चरण भी लाल पंकज पुष्प के समान हैं।


कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरद सुंदरं।

पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमी जनक सुतावरं।।

अर्थ:-श्रीरामचन्द्रजी के शरीर की सुंदरता की छवि अगणित सुंदर एवं आकर्षक मन को मोहित करने वाले कामदेवों से भी ज्यादा है। श्रीरामचन्द्रजी की देह नए गहरे आसमानी रंग के या नील कमल के पौधे के रंग के जल से पुरीपूर्ण बादल रूप के समान सुंदर रंग है, पीले आकाश जैसा बादल रूप शरीरों में मानों तड़ित के समान चमक रहा है, ऐसे पवित्र जानकी के पति श्रीरामजी को मैं नमस्कार करता हूँ। 


भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकन्दनं।

रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नन्दनं।।

अर्थ:- हे मेरे चित से भटके हुए मन, दिनों के बन्धु, भास्कर की अग्नि के समान तेजस्वी, राक्षस एवं दानवों के वंश का पूरी तरह नाश करने वाले, आनँदकंद, कौशल देशरूपी आकाश में निर्मल सोम के समान श्री दशरथ नंदन श्रीराम जी का भजन कर।


सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।

आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खरदूषणं।।

अर्थ:-भिन्न-भिन्न तरह के रत्नो से जड़ा हुआ मुकुट पर जो मस्तक पर धारण किये हुए हैं, जिनके कानों में कुंडल धारण किये हैं, सुन्दर तिलक भाल पर सुशोभित हो रहा है और शरीर के सभी अंगों पर आभूषण से सजित है, जो कि बहुत ही मन को आकर्षित करने वाला रूप हैं। भुजाएँ घुटनों तक लम्बी है, हाथों में धनुष-बाण को लिए हुए हैं, खर-दूषण दैत्य को संग्राम में पराजित करके विजय प्राप्त की है, उन श्रीरामजी को में वंदन करता हूँ।


इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं।

मम हृदय-कंज निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनं।।

अर्थ:-जो मुनियों, शेष और भोलेनाथ के मन को खुश करने वाले हैं, काम, क्रोध, लोभादि शत्रुओं को नष्ट करके अच्छे भाव को जाग्रत करने वाले हैं, तुलसीदासजी अरदास करते हैं, की वे श्री रघुनाथजी मेरे हृदयकमल में हमेशा रहे।  


मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो।

करुना निधान सुजान सीलू सनेहु जानत रावरो।।

अर्थ:-जिसमें तुम्हारा मन आकर्षित हो गया एवं उसकी छवि तुम्हारे मन के हृदय में घर कर चुकी हैं, वही स्वभाव से सुंदर सांवला वर(श्रीरामचंद्रजी) तुमको प्राप्त होंगे। वह दया के सागर और सुजान अर्थात सभी तरह को जानने व सभी जगह पर निवास करने वाले हैं, तुम्हारे शील या मर्यादा और प्रेम-अनुराग को को जानने वाले है।


एहि भाँति गौरी असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।

तुलसी भवानिहि पूजि पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली।।

अर्थ:-इस तरह श्रीगौरी जी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी सहित समस्त सखियाँ हृदय में हर्षित हुई। तुलसीदासजी कहते हैं-सीताजी मन से बहुत खुश होती है, क्योंकि माता भवानीजी को बार-बार पूजकर खुशी के साथ अपने राजमहल की ओर चल पड़ती हैं।


सोरठा:-

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।

अर्थ:-गौरी जी को अनुकूल जानकर सीताजी के हृदय में जो खुशी हुई उसको व्यक्त नहीं कि जा सकती हैं, जो उनको खुशी हुई उनके लिए तो सबकुछ उन्होंने प्राप्त कर लिया हैं। सुन्दर मंगलों के मूल उनके बायें अंग भी फड़कने लगे थे, उनको अपने मन की कामना की सिद्धि का संकेत मिल रहा था।


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ये तो हुआ श्रीराम स्तुति का अर्थ। अब आते हे अभी वर्तमान के बहुत ही प्रचलित मंत्र पर, विशेषकर शिवजी के श्रावण मास में तो इसका एक भजन बहुत ही प्रचलन में था। इस मंत्र को हम हर आरती के बाद बोलते हैं लेकिन आश्चर्य की बात है की किसी को उसका मतलब पूछा जाए तो सभी बस एक दूसरे का मुंह ही देखेगे क्युकी हमने तो बस भजन कीर्तन और मंदिर जाने, पाठ पूजा करने को ही अपना धर्म पालन करने का तरीका मान लिया हे या ये कहूं की अपने मनोरंजन का साधन मान लिया है और लोग तो फिर हमारी इस चीज का फायदा उठाएंगे ही क्युकी हमे खुद को अपने धर्म संस्कृति का सही ज्ञान नही तो हम दूसरे को क्या सही दिशा दिखाएंगे। यहा तक की हमे ये भी पता नहीं चलेगा की सामने वाला हमारे धर्म का ही मजाक बना रहा है। खेर ये सब बाते तो होती रहेगी जब तक हम जागरूक ना हो जाए।


किसी भी मंदिर में या हमारे घर में जब भी पूजन कर्म होते हैं तो वहां कुछ मंत्रों का जप अनिवार्य रूप से किया जाता है। सभी देवी-देवताओं के मंत्र अलग-अलग हैं, लेकिन जब भी आरती पूर्ण होती है तो यह मंत्र विशेष रूप से बोला जाता है-

 

कर्पूरगौरं मंत्र-

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।

सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।


इसका अर्थ इस प्रकार है:-

कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।

करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं।

संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं।

भुजगेंद्रहारम्- इसका अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं।

सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है।

मंत्र का पूरा अर्थ- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।

 

लेकिन यही मंत्र क्यों...  

किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारम....मंत्र ही क्यों बोला जाता है, इसके पीछे बहुत गहरे अर्थ छिपे हुए हैं। भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु जी द्वारा गाई हुई मानी गई है। अमूमन ये माना जाता है कि शिव शमशान वासी हैं, उनका स्वरुप बहुत भयंकर और अघोरी वाला है। लेकिन, ये स्तुति बताती है कि उनका स्वरुप बहुत दिव्य है। शिव को सृष्टि का अधिपति माना गया है, वे मृत्युलोक के देवता हैं, उन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है, पशुपति का अर्थ है संसार के जितने भी जीव हैं (मनुष्य सहित) उन सब का अधिपति (प्रधान)। ये स्तुति इसी कारण से गाई जाती है कि जो इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे। शिव श्मशान वासी हैं, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं। हमारे मन में शिव वास करें, मृत्यु का भय दूर हो।



Sanatan dharm me puja path ka mahatva/Importance of worship in Sanatan Dharma


अब आते हे एक और प्रचलित मंत्र पर जो कि गुरु को समर्पित मंत्र है।

हिंदू धर्म में गुरुओं को भगवान से भी ऊपर का दर्जा प्राप्त है. गुरु के जरिए ही मनुष्य ईश्वर तक पहुंच सकता है. ऐसे में गुरुओं की पूजा भी भगवान रूपी की जानी चाहिए।


गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः

गुरुर्देवो महेश्वरः

गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म 

तस्मै श्री गुरवे नमः


गुरु ब्रह्म मंत्र का अर्थ -

गुरु ब्रह्मा - गुरु ब्रह्मा हैं, जो सृष्टि के भगवान हैं, जिन्हें जनक भी कहा जाता है, गुरु विष्णु का अर्थ है गुरु विष्णु (विष्णु भगवान हैं जिन्हें आयोजक कहा जाता है), गुरु देवो महेश्वर का अर्थ है गुरु महेश्वरा (शिव या संहारक) , गुरु साक्षात परब्रह्म का अर्थ है परब्रह्म अर्थात। सर्वोच्च देवता या सर्वशक्तिमान।

क्योंकि गुरु हमें प्रकाश के मार्ग की ओर ले जाता है इसलिए गुरु ब्रह्मा के समान है और तस्मै श्री गुरुवे नमः का अर्थ हम उस गुरु को नमन करते हैं जो हमें प्रकाश के मार्ग की ओर ले जाता है। हमारे शास्त्रों में गुरू शब्द का अर्थ इस प्रकार है- ‘गु’ का अर्थ ‘अंधकार या मूल अज्ञान’ और ‘रू’ का अर्थ ‘उसका निरोधक’ बताया गया है, जिसका अर्थ ‘अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला’ अर्थात अज्ञान को मिटाकर ज्ञान का मार्ग दिखाने वाला ‘गुरु’ होता है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं गुरु परम ब्रह्मा और परम देवता का अवतार है।


आशा करूंगी आप सभी से की आप अपने धर्म और संस्कृति को बनाए रखेंगे, उसका साफ दिल से सम्मान करेंगे। केवल दिखावे के लिए या केवल अपने स्वार्थ या मनोरंजन के लिए भजन कीर्तन, पूजा पाठ और मंत्रोचारण नही करेगे। कम से कम इस तरह से अपने धर्म का, अपने भगवान का मजाक ना बनाए और ना किसी और को बनाने दे।

जय सिया राम 🙏

भारत प्राचीन स्वर्ण शिक्षा प्रणाली और उसका पतन


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